SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ..- उन देव भी व्रती का तिरस्कार नहीं करते। ---- प्रती पुरुष अवस्था में कम हो तो भी वृद्धजन उसे नमस्कार करते हैं । ... लोग अतरहित वयोवृद्ध को तृण के समान समझते हैं । -... प्रती फलसहित वृक्ष के समान है और प्रवती फलहीन वृक्ष के समान । ...... प्रतभंग कर जीने की अपेक्षा मरना अच्छा है। - लोग प्रायः मांगलिक व्यवहार में ही प्रवृत्त होते हैं। - बन्धुओं के साथ अनुचित व्यवहार करना उचित नहीं है। -- व्यसनी मनुष्य सब कुछ कर डालता है । ...-- घृत से लोकापवाद के कारण सम्पुर्ण यश नष्ट हो जाता है । - थूत सब अनर्थों की जड़ है। द्यूत के समान पाप न हुन्मा है और न होगा। -- छूत दुर्धर दुःखदायी होता है । ..... चूत से बढ़कर अन्य कोई निकृष्ट व्यसन नहीं है। ..... शराबी का पतन होता ही है । - शराबी की अधोगति होती ही है । ..... जो मांसभक्षण नहीं करता उत्तमति उसके हाथ में ही है। -- जो नर मांस खाता है वह अघम हो जाता है। -~~ संसार में सन्नी प्रभुता सबका हित करने वाली होती है । 2981RDwonr
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy