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________________ तेषामाचरणं सर्व, प्रोक्तं च परमागमे । तद्विधिनोपदेशेन, तत्कर्तव्यं स्वशक्तितः॥ ६४।। आगम के अनुसार, पंडित कहते सोय। अपनी शक्ति देखकर, पालन करियों सोय ॥ ६४ ॥ उपर्युक्त व्रतों की विधि, स्वरूप, परमागम में निरूपित है, आगमज्ञ-आगम के ज्ञाता आचार्यादि से सम्यक् प्रकार ज्ञात करना चाहिए तथा तद्नुसार अपनी शक्ति प्रमाण उन का आचरण करना चाहिए।। ६४ ॥ वे इंदिय वए बाए, पमाओ अवि कम्मुणा। एग पोसह संधुत्ता सय मंतं च आचरै ।। ६५॥ द्वीन्द्रियस्यवधे जाते, प्रमादाश्चेत् कर्मणा। एक प्रोषध संयुक्ताः, शतम चरेत् ।। ६५ ।। प्रमाद के वश होयकर, दो इन्द्रिय वध होय। विधि से एक प्रोषध, सहस्त्र मंत्र जप होत ॥६५॥ षड़ कर्मों के संपादन में प्रमादवश यदि द्विन्द्रिय जीव का घात हो जाय तो उसकी शुद्धि का प्रायश्चित्त एक प्रोषध एक भुक्ति करे और सौ महामंत्र का जप भी करें। ६५॥ तंति इंदिय मेव हि तमेव चउरिदयं । एग वे ति चउत्थं च कुण्वे पावं पसंतए ॥६६॥ तद्वयं त्रीन्द्रिये प्रोक्तं, तद्वयं चतुरिन्द्रिये । एक द्वि-त्रि-चतुर्थं च, कुर्यात्पापं प्रशांतये ।। ६६ ॥ जो विधि दो और तीन इन्द्रियों की, वही चौथी की होय । इन चारों इन्द्रियों को वश करें, तभी पाप नष्ट होय ।। ६६ ।। उपर्युक्त विधिवत् तीन इन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव का यदि प्रमादवश घात वध हो जाय तो उससे उत्पन्न पाप की शांति के लिए दो व तीन प्रोषध दो सौ व तीन सौ मंत्र जप करना चाहिए ।। ६६ ॥ प्रायश्चित्त विधान - १०२
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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