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________________ e n mastavgirintinuirinaarministia उन दोनों की दृढ़ता, सुंदरता अर्थात् सौम्यता का वीक्षण परीक्षा करें। मिलान कर लें ॥५१॥ ता. पडिठ्ठावं सया पण्णा, जहा पोम्माणुवं चरे। सव्व सुद्धि महण्हाणं, कल्लाणेस्त तवेण हि ॥५२॥ प्रतिष्ठाप्य सदा-प्राज्ञाः, यथा पायानुवतं चरेत् । सर्व विशुद्धि महास्नानं, कल्याण तपसा सहः॥५२॥ श्री गुरु के चरण न नमें, जो होवे बुद्धिमान। उसकी शुद्धि के लिए, करो शीघ्र स्नान ।। ५२ ॥ विधिवत् प्रतिष्ठा कराकर स्थापित कर सतत बुद्धिमान गर्भ, जन्म तथा नमादि कल्याणलों को हों या माले तथा सर्व शुद्धि से महामस्तकाभिषेक करें। तथा कल्याण नामक तप भी करें - एक निर्विकृति, एक पुरुमण्डल, एक-एक स्थान, एक आचाम्ल और एक क्षमण को कल्याण तप कहते हैं। नीरस भोजन को निर्विकृति कहते हैं। अनगार (मुनि) की भोजनबेला (समय) को पुरुमण्डल कहते हैं। एक ही स्थान में स्थिर रहकर भोजन करने को एक स्थान कहते हैं। अर्थात् तीन मुहूर्त काल पर्यंत निश्चल रहकर भोजन करना । कांजी आहार आचाम्ल है। एक उपवास को क्षमण कहते हैं ।। ५२ ॥ भजे पंच णमुक्कारं, सहस्स दस संखगं । चाउवण्णस्स पत्तस्स, दाण-सय मुदं हदे ।। ५३ ।। जपेन्पंच नमस्कार, सहस्रदश संख्यकं । चातुवर्णाय पात्राय, दानं शतमुदा हृतं ।। ५३ ॥ णमोकार के मंत्र को, जपे जो सहस्र दश बार। चार वर्ण को दान दो, मुट्ठी बांधे सो बार ॥५३॥ जिससे प्रतिमा भंग हुई थी वह पुनः दश हजार संख्या प्रमाण महामंत्र णमोकार का सानंद भक्ति से जाप करें। चारों वर्गों के पात्रों को मुनि-आर्यिका-श्रावक healpMaralalayamayphalathinindinindmosdawain-maduhammarAKriMaininindimriment प्रायश्चित विधान - १७
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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