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________________ विनाप्ताज्ञा जपध्यान, दानानशन संयमः । व्रच शीलानि वृद्धि स्यात् तथा संवर निर्जरौ ॥ ४२ ॥ जिनेन्द्र की आज्ञा से, जप, ध्यान, दान से संयम होय । व्रत व शील की वृद्धि से, संवर निर्जरा होय ॥ ४२ ॥ ACTOXXXXX सर्वज्ञ जिनेन्द्र देव यथार्थ आप्त हैं। उनको आज्ञा प्रमाण जप, ध्यान, दान, अनशन, संयम, व्रत, शील आदि की वृद्धि होगी और इनके द्वारा संवर एवं निर्ज होगी ॥ ४२ ॥ भूय भव्व हवे पाव कारियाणुमयं कथं । चित्ताणुकपए वृत्त तं हि सुद्धि विहीयए ॥ ४३ ॥ 04-04 7 भूत-भाव्य-भवत् पापं कारितानुमतं कृतं । चित्तानुकंपयालोच्य तद्धि शुद्धि विधीयते ॥ ४३ ॥ MA भूत, भविष्य, वर्तमान के पापों का कृत, कारित अनुमोदन होय। आलोचना पर मन कम्पित न हो, तभी शुद्धि होय ॥ ४३ ॥ चित्त- 1- मन की शुद्धि से पूर्व कृत- कारित- अनुमोदित पाप क्रियाओं, वर्तमान की व भविष्य संबंधी इसी प्रकार की क्रियाओं को अनुकंपा पूर्वक आलोचना कर आत्म शुद्धि विधान करना चाहिए। इस प्रकार पुनः पुनः आलोचनाप्रत्यालोचना का फल निम्न प्रकार होगा ।। ४३ ॥ सव्व पाव विणिम्मुतिं सव्व पुण्णं च उत्तए । अरहच्चण सप्पत्तं दाणं सीलव्वर हवे || ४४ ॥ सर्व पापविनिर्मुक्तिः, सर्व पुण्याश्च वाप्तये । अर्हदर्चन - सत्पात्र, दान शील व्रतै र्भवेत् ॥ ४४ ॥ सर्व पापों से मुक्त हो, सर्व पुण्य को ग्रहण करें। अर्हत अर्चना, सत्पात्र को दान, व्रत व शील को ग्रहण करें ॥ ४४ ॥ प्रायश्चित विधान - १३
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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