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सम्मानसमाxrruar:
जवादित्ति तिहिजुत्तं पूयणं परमेट्टिणं । सामाइगा गेव्हाचं वित्तपुतिम् ।। १ . :
जपादिति त्रिभिर्युक्तं, पूजनं परमेष्ठिनां । सामायिकादिके स्नाने, वर्तति वृत्तमुत्तमं ।।६।। तीन गुप्ति सहित, पंच परमेष्ठी की पूजन व जाप कर। सामायिक में मग्न हो, उत्तम व्रत का पालन कर ।। ६ ।।
स्नानादि क्रिया करने पर सामायिकादि क्रिया में मन, वचन, काय की शुद्धि पूर्वक जपादि एवं पंच परमेष्ठियों की भक्ति से पूजन करना चाहिए । अर्थात् प्रथम शरीर शुद्धि करना श्रावक का कर्तव्य है। पुन: आर्त रौद्र परिणाम त्याग मन की शुद्धि करे। शुद्ध उच्चारण करते हुए महामंत्र णमोकार का जाप तथा साम्य भावरूप सामायिक करें, तदनंतर अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु परमेष्ठियों की यथायोग्य पूजन करें।॥ ६॥ तथा
घडीणं णव अक्कस्स, सत्तगो पंचगो सरो। कालत्तयो तवोवित्ती, मझं किच्चा अणुट्टियं ।।७।।
घटीनां नवकेऽस्य, सप्तक: पंचकः स्मृतः। कालास्त्रयो तपोवृत्या, मध्यं कृत्वानुमायिनां ॥७॥ कठोर नव नाड़ी स्पर्श से, सात पांच की स्मृति होय । काल के अंधकार में तप, व्रत के मध्य अनुष्ठान होय ॥ ७॥
सूर्योदय के समय अर्थात् बाह्ममुहूर्त में नौ घड़ी - ९४२४ - दो सौ सोलह । मिनट में तीन घंटा छत्तीस मिनट अथवा सात घटी अर्थात् दो घंटा अडलालीमः । मिनिट तथा पांच घटी अर्थात् दो घंटा सामायिक करना उत्तम तपोनुष्ठान है। इस प्रकार प्रतिदिन अनुष्ठान करने वालों का यह क्रम से उत्तम, मध्यम, व जघन्य समय समझना चाहिए। इसी अभिप्राय को निम्न श्लोक में स्पष्ट किया है ।।७।।
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