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________________ सालासपाrar तथा द्रव्य व भाव के मलिन होने से धर्म और चारित्र स्वयं मलिन हो जाता है। अतएव सूतक पातक के मानने से द्रव्य शुद्धि होती है। द्रव्य शुद्धि होने से भाव शुद्धि होती है और भाव शुद्धि होने से चारित्र निर्मल होता है । इस संसार में मनुष्यों का सूतक रागद्वेष का मूल कारण है तथा रागद्वेष से आत्मा की हिंसा करने वाले हर्ष और शोक प्रगट होते हैं। यह निश्चित सिद्धांत है कि मनुष्य जन्म में भी धर्म की स्थिति शरीर में आश्रित है । इसलिए मनुष्यों के शरीर की शुद्धि होने से सम्यग्दर्शन और व्रतों की शुद्धि करने वाली धर्म की शुद्धि होती है। इसलिए धर्म की शुद्धि के लिए मस्त सुद्धियों को पार करने वाला शुभ इस सूहाला पातक का पालन अवश्य करना चाहिए। प्रायश्चित्तं चिकित्सां च ज्योतिषं धर्म निर्णयं । बिना शास्त्रेण यो वयात् तमाहुर्ब्रह्म घातकं ।। प्रायश्चित्त कर्म, चिकित्सा शास्त्र, (रोग दूर करने के लिए दवाई देना) लग्न मुहूर्त गणित शास्त्र आदि ज्योतिष शास्त्र और धर्म शास्त्र का निर्णय सब बातों को इनके अलग-अलग शास्त्र देखे बिना जो अपने मन से ही बुद्धिमान बनकर अपने मन के अनुसार कहता है अथवा तू ऐसा कर ले इस प्रकार दूसरों से कहता है उसको लौकिक शास्त्र में हत्यारा या यातकी या ब्रह्मयति बतलाया है। तथाच आचार्य देवज्ञ नृपाश्च वैद्याः ये शास्त्र हीना रचकांतिकर्म देवैः वृत्तियां मम इत्तरुपाः सृष्टाः प्रजा संहरण्य नूनं ॥ . लंघन पथ्य निर्णय शास्त्र में लिखते हैं कि जो आचार्य (प्रायश्चित्त आदि धर्म शास्त्र का निर्णय देने वाला) ज्योतिषी, राजा और वैद्य ये चारों ही पुरुष अपने-अपने कार्यों के बिना शास्त्र देखे केवल अपने मन से या केवल बुद्धि के बल से करते हैं उनको मानो ब्रह्मा ने मम के दूतों के समान केवल प्रजा को मारने के लिए ही इस पृथ्वी पर बनाया है। इत्थं प्रायश्चित्मनर्थेप्रतिषिद्धे, जाते दोघे शीघ्रतरंस प्रविधेयं । नो चेदेव राष्ट्र मशेष परिहीनः, नगरं राष्ट्रपति प्रविहीनं ।। ३३ ।। TACT प्रायश्चित्त विधान - ५८
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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