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________________ महाव्रतों को धारण करते हैं और फिर प्रयत्न पूर्वक उनका पालन करते हैं उनके ही व्रत शुद्धि आचार्यों ने सालाई है। जो मुनि समाप्त गरिशाहों हो रहा है, किन्तु रत्नत्रय रूपी परिग्रह से सुशोभित है जो अपने शरीर का प्रतिकार कभी नहीं करते है जो समस्त आरंभों से रहित है, सदा मौन व्रत धारण करते हैं जो सत्य धर्म का उपदेश देने में सदा तत्पर रहते हैं, जो बिना दिया हुआ अन्य का माल भी ग्रहण नहीं करते हैं और जोशील से सदा सुशोभित रहते हैं जो मुनियों के अयोग्य बाल के अग्रभाग के करोड़ वें भाग के समान परिग्रह को धारण करने की स्वप्न में भी कभी इच्छा नहीं करते. जो अत्यन्त संतोषी है. दिगम्बा अवाथा को धारण करते हैं जो अपना निस्पृहत्वगण धारण करने के लिए शरीर में या शरीर की स्थिरता के कारणों में कभी मोह या ममता नहीं करते और जो उत्पन्न हुए बालक के समान निर्विकार दिगम्बर शरीर को धारण करते हैं। जो मुनि अपने व्रतों को शुद्ध रखने के लिए जिन वन में या जिस श्मशान भूमि में सूर्य अस्त हो जाता है, वहीं पर बिना किसी के रोके निवास कर लेते हैं। इस प्रकार जो सर्वथा निर्मल आचरणों को पालन कर अपने व्रतों को निर्मल रीति से पालन करते हैं उनके ही जैन शास्त्रों में व्रत शुद्धि बतलाई है। ___ जो समस्त परिग्रहों से रहित शुद्ध हृदय को धारण करने वाले धीर-वीर मुनि अपने ध्यान की सिद्धि के लिए किसी वन में निर्जन स्थान में, सूने घर में, किसी गुफा में या अन्य किसी एकांत स्थान में या अत्यन्त भयंकर श्मशान में निवास करते हैं उसको वसति शुद्धि कहते हैं। प्रासुक स्थान में रहने वाले और विविक्त एकांत स्थान में निवास करने वाले मुनि किसी गांव में एक दिन रहते हैं और नगर में पांच दिन रहते हैं। सर्वथा एकांत स्थान को ढूंढने वाले और शुक्ल ध्यान में अपना मन लगाने वाले मुनिराज इस लोक में भी गज मदोन्मत्त हाथी के समान ध्यान के आनन्द का महासुख प्राप्त करते हैं। जिन मुनियों का हृद्य विशाल है' जो धीर वीर है, एकल विहारी है, अत्यन्त निर्भय है, जो वन में ही निवास करते हैं जो अपने शरीर आदि से कभी ममत्व नहीं करते और जो सर्वथा विहार करते हैं कहीं किसी से रोके नहीं जा सकते ऐसे मुनि प्रतिदिन भगवान महावीर स्वामी .... ......... प्रायश्चित विधान - ४३ . . . . .. ALL AR
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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