SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . .. . . ..... ....... ...... . श्री सिद्ध क्षेत्र स्थान श्री १००८ श्री कुथलांगेरि तीर्थाधिराज पर श्री जिनेन्द्र देव - की साक्षी पूर्वक निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण की। कारण उस समय कलिकाल के महापभाव से सतत् निर्ग्रन्थ मुद्रा धारण करके रहने वाला कोई श्री गुरु प्राप्त नहीं हुआ था। निर्ग्रन्थ दीक्षा में श्री आदिसागर मुनि कुञ्जर में जब कुंभोज बाहुबलि पहाड़ पर केशलोंच किया था, उस समय आकाश में जयघोष हुआ था उस समय कुछ लोग महाराज के दर्शन के लिए आये थे जो नीचे पहाड़ के थे वे जय शब्द सुनकर ऊपर आये थे और विचारते थे कि यहाँ बहुत लोगों ने जयघोष किया था। यह सुनकर हम आये हैं उत्तर दिया गया कि यहाँ केवल महाराज और १ उपाध्याय पण्डित है और कोई नहीं इनके (महाराज) देवकृत जयशब्द हैं उस घोष को सुनने वाले देशाई देव ऊदगाँव में अभी विद्यमान हैं। लक्ष्मणराव भरमप्पा आरवाड़े मांगलो प्रबन्ध करते थे। महाराज श्री उपदेश देते थे दीक्षाएं दी संघ बन गया । आप पंचाचार का पालन करते थे। अतः श्रुतपंचमी के रोज सन् १९२५ में आपको आचार्य परमेष्ठी का पद घोषित कर दिया गया । आप सप्ताह में एक बार आहार लेते थे । आहार में एक ही वस्तु ग्रहण करते थे उनमें बड़ी शक्ति थी। आम की ऋतु में आम के रस का आहार मिला तो वे उस पर ही निर्भर रहते थे । दूसरी वस्तु नहीं लेते थे। जब गन्ने का रस लेते थे तब रस के सिवाय अन्य कोई भी पदार्थ ग्रहण नहीं करते थे। वे कन्नड़ी भाषा में आध्यात्मिक पदों को गाते थे वास्तव में उन की ज्ञान संपत्ति अपूर्व थी। पर जब श्रावक लोग उन्हें अपने कंधे पर उठा कर ले जाते थे तब उठाने वाले को ऐसा लगता था कि किसी बालक को उठाया हो । वे प्रायः कोनूर की गुफाओं में रहते थे और ध्यान करते थे। वहाँ शेर आया करता था। शेर के आने पर भय का संचार नहीं होता। थोड़ी देर दर्शन कर शेर चला जाता । आपके संघ में ६०-७० साधु थे । अंकली गांव में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा हुई थी। उस समय चारित्र चक्रवर्ती पद दिया गया था। आपने दीक्षाएँ दी उनमें क्षुल्लक शान्तिसागरजी दक्षिण को ऐलक दीक्षा दी जो वर्तमान में आचार्य शान्तिसागर (दक्षिण) के नाम से प्रसिद्ध हैं। आचार्य महावीरकीर्ति जी महाराज जिनका जन्म फिरोजाबाद में प्रायश्चित विधान - २
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy