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मापारमाxxxrE लिखा है। यदि ब्राह्मण मिथ्यादृष्टि, पाखण्डी, विषय भोग के लम्पटी, दुराचारी, हिंसादिक महापाप के धारी, महारम्भी, जैन धर्म के निन्दक, द्रोही, अभिमानी
और दूसरों को ठगने वाले ऐसे अपात्र हो तो उनको दानादिक कभी नहीं देना चाहिए। ऐसे ब्राह्मणों को कभी दान नहीं देना चाहिए।
प्रश्न - यदि वर्तमान समय में सम्यग्दृष्टि ब्राह्मण न मिले तो क्या करना चाहिये?
तो इसका उत्तर यह है कि जैन शास्त्रों में और प्रकार से भी गौदान करना लिखा है। भगवान अरहन्त देव के अभिषेक करने के लिए श्री जिन मन्दिर में गौदान देना चाहिये । इसलिए यदि सम्यग्दृष्टि ब्राह्मण न मिले तो जिन मन्दिर में गोदान करना चाहिए।
प्रश्न - जिन मन्दिर में गोदान करना कहाँ लिखा है तथा इसकी प्रवृत्ति भी आजकल कहाँ है तो इसका उत्तर यह है कि यह प्रकरण त्रिवर्णाचार में दश दान का वर्णन करते समय लिखा है वह इस प्रकार है - पहले तो उत्तर पुराण में लिखा है। शास्त्रज्ञान, अभयदान और दान देतीयों दान बुद्धिमानों को देने चाहिए। ये तीनों दान अनेक प्रकार के फल को देने वाले हैं। सो ही उत्तर पुराण में लिखा है -
शास्त्राभयान्नदानानि प्रोक्तानि जिनशासने ।
पूर्व पूर्व बहुपात्र फलानीमानि धीमता ।। और देखो दशवें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ के अन्तराल में एक भूति शर्मा नाम के ब्राह्मण के एक मुण्डशालायन नाम का पुत्र हुआ था। उसने बहुत विद्या पढ़ी थी परन्तु मिथ्यात्व कर्म के तीव्र उदय से वह जिनधर्म का तीव्र द्रोही था। उसने जिनधर्म के विरूद्ध बहुत से शास्त्र बनाये और लोभ के वशीभूत होकर अपनी आजीविका के लिए "ब्राह्मणों को कन्या आदि दश प्रकार के दान देना चाहिए" ऐसा वर्णन किया और उसमें बहुत घुण्य बतलाया । कन्या, हाथी, सुवर्ण, घोड़ा, कपिला, (गो) दासी, तिल, स्थ, भूमि, घर ये दश प्रकार के दान ब्राह्मणों को देने के लिए बतलाये । इस प्रकार उसने महा हिंसा की प्रवृत्ति करने वाले कुत्सित दानों का स्थापन किया।
प्रायश्चित विधान - २१