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यदि कोई श्रावक-श्राविका म्लेच्छ जाति के घर व किसी नीच के घर भोजन पान कर ले तो उसको तीस उपवास, तिरेपन एकासन, अपनी जाति के दो सौ. पुरुषों का आहार दान, गौ-दान, पाँच-पाँच घड़ों से दो सौ बार भगवान का अभिषेक. गंध, पुष्प, अक्षतादिक से भगवान की पूजन और विशेषता के साथ दो तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा करनी चाहिए। यह उसका प्रायश्चित्त है। इतना कर लेने पर वह शुद्ध होता है, पंक्ति में बैठने योग्य होता है। सो ही लिखा है -
म्लेच्छादिनीचबा गेहे भुक्तं त्रिशदुषोषणम् एकभुक्ते त्रिपंचाशत् पात्रदानं शतद्वयम् ॥ एका गौ पंचकुंभेश्चाभिषेकानां शतद्वयम् । पुष्पाक्षतं तीर्थयात्राद्वयं कुर्या द्विशेषतः ।।
- जिन संहिता यदि कोई श्रावक-श्राविका विजाति के घर (जो अपनी जाति का नहीं है दूसरी जाति का है उसके घर) भोजन कर ले तो उसको नौ उपवास, नौ एकासन, मौ अभिषेक, अपनी जाति के नौ पुरुषों को आहारदान और तीन सौ पुष्पों से जप करना चाहिए। यह उसको दण्ड व प्रायश्चित्त है। इतना कर लेने पर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है। सो ही लिखा है। यथा
विजातीयानां गेहे तु भुक्तं चोपोषणं नव।
एक भुक्त्यन्नदानाभिषेक पुष्पशतत्रयम् ॥ . जिसके घर कोई मनुष्य पर्वत से गिर कर मर गया हो अथवा सांप के काट लेने से मर गया हो अथवा हाथी, घोड़ा आदि किसी सवारी से गिर कर मर गया हो तो उसके बाद रहने वाले को नीचे लिखे अनुसार प्रायश्चित्त लेना चाहिए। उसको पचास तो उपवास करने चाहिए और पचास ही भगवान के अभिषेक करने चाहिए तथा पूजा करनी चाहिए। इतना प्राविश्चत करने पर वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है। सो ही लिखा है -
गिरेः पातो हि दष्टश्च गजादि पतनान्मृतः। उपवासाश्च पंचाशदभिषेकाच तैः समाः ॥ सासारामाणम्
प्रायश्चित्त विधान - १३