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________________ कितने ही अधर्मी इन तीन दिनों में सामायिक, प्रतिक्रमण तथा शास्त्र के स्पर्श आदि कार्यों को करते हैं, ऐसे लोग उससे होने वाले अविनय और महापाप को नहीं मानते। यदि कोई इन कार्यों के करने के लिए निषेध करते हैं तो उनको यह उत्तर देते हैं कि इस पारी में एदा है की सा र साना साना कहा रहते हैं यदि किसी के गोठ या फोड़ा हो जाता है और वह पक कर फूट जाता है उसी प्रकार स्त्रियों का यह मासिक धर्म है। अतः आज्ञा बाह्य, महापातकी और उनाचारी हैं। रजस्वला स्त्री के स्पर्श, अस्पर्श का उसकी भूमि की शुद्धि का, तथा संभाषण आदि के दोषों को अर्वाचीन आचार्यों ने बतलाया है। कितने ही पापी अपनी लक्ष्मी के मद में आकर रजस्वला स्त्रियों को भूमि पर नहीं सोने देते किंतु उन्हें पलंग पर ही सुलाते हैं यदि कोई उसका निषेध करता है तो अपनी राजनीति का अभिमान करते हुए नहीं मानते हैं। ऐसे लोग बड़े अधर्मी और पातकी गिने जाते हैं। जो मुनि होकर घोड़े पर चढ़े, जो स्त्री रजस्वला अवस्था में ही पलंग पर बैठे या सोवे तथा जो गृहस्थ शास्त्र सभा बैठकर बातें करे ऐसे पुरुषों को देखकर ही वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए। अश्वारूढयतिं दृष्ट्वा खवा रूढां रजस्वलां। शास्त्र स्थाने गृह वक्तृन्, सचेल स्नानमाचरेत् ॥ यदि कोई बालक मोह से रजस्वला स्त्री के पास सोवे, बैठे या रहे तो सोलह बार स्नान करने से उसकी शुद्धि होती है यदि कोई दूध पीने वाला बालक दूध पीने के लिए उसका स्पर्श करे तो जल के छोटे देने मात्र से ही उसकी शुद्धि हो जाती है। क्योकि ऐसे छोटे बालक को स्नान करने का अधिकार नहीं है। तया सह तद्वालस्तु द्वयष्ट स्नाने शुद्धयति । तांस्पर्शन स्तनपायी वा प्रोक्षणे नैव शुद्धयति । मक्षिकामारूतो गावः स्वर्ण मग्नि महानदी । नाव: पाथोदकं पीठं नास्पृश्यं चोच्यते बुधैः ।। प्रायश्चित्त शास्त्रों में और भी कितने ही पदार्थ बतलाये हैं जिनमें स्पर्श का प्रायश्चित विधान - १४०
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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