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________________ सुकम्म अहिगारं च दिण दिणं च विसई॥ १०१।। पुत्र प्रसूतौ तदा मातुर्दशाहमनिरीक्षणं । सुकर्मानधिकारोऽस्ति दिनानिकिल विंशति ।। १०१।। पुत्र जन्म से दश दिन तक, दर्शन कोई न कर पाये। बीस दिन घर काम छोड़कर, मास बाद पूजा दान कर पाये ।। १०१ ॥ ____ यदि प्रसूता स्त्री को पुत्र उत्पन्न हुआ हो तो उस माता को दश दिन तक तो अनिरीक्षण नामका सूतक लगता है, अर्थात् दश दिन तक को किसी को भी उसका दर्शन नहीं करना चाहिए। तदनंतर बीस दिन तक घर के किसी भी कार्य को करने का उसको अधिकार नहीं माना जाता । इस प्रकार जिनागम के अनुसार पुत्र उत्त्पन्न करने वाली प्रसूता स्त्री को एक महीने का सूतक लगता है। एक महीने के बाद वह स्त्री लिन पूजा और पानदान के लिए शुद्ध पानी जाती है !! २०१॥ इत्थीपसूय माउ वितं दसं च णि रिक्खए। सुकम्मं अहिगारं च जाव विसइ वासरं ॥ १०२।। स्त्री प्रसूतौ तुमातुः स्याद्दशाहान्यनिरीक्षण। सुकर्मानधिकरोऽस्ति यावदिशति वासरां ॥ १०२॥ पुत्री जन्म से दश दिन तक, दर्शन कोई न कर पाये। बीस दिन घर काम छोड़कर, सूतक पालन कर पाये ।। १०२॥ पक्खाहं च जिणेसं च, अहिगार सुलक्खणं | मासं एगं च धम्म च, सोयं च कुणेज्ज णिच् ॥ १०३।। पक्षाहं च जिनेज्याद्यनधिकार सुलक्षणं । मासैकार्घमशौचं हि प्रसूताया जिनैर्मतं ॥ १०३ ॥ पक्ष बाद जिनवर की पूजा, पात्र दान कर सकते हैं। कन्या जन्म से डेढ़ मास का सूतक जिनवर कहते हैं ।। १०३ ।। प्रायश्चित्त विधान - ११६
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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