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________________ matanitaryamanारणpamoonam Raisenefkepootu समयसम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्र जब प्रायश्चित्त, अभिषेक, पात्रदानादि अपनी शक्तिनुसार होय। तब अपनी धर्म, संवेग व बुद्धि में वृद्धि होय ।। ८३ ॥ धर्म भीरु धर्म रक्षार्थ अपनी शक्ति अनुसार श्री जिनाभिषेक और पात्रदान करे तो निश्चय ही पाप अर्थात् दोष की शुद्धि होती है ।। ८३ ॥ तिसं झंगणभूभंतं किच्चा पंच सया भजे । पौष अपाय सेयाओ सह अधण संसयों ।। ८४ ।। त्रिसंध्यंगणमृन्मंत्रं, पंचकृत्वासदा जपेत् । पापाऽपापं सु श्रेयाद्रिः, लभतेनाऽत्रसंशयः ।। ८४ ॥' प्रायश्चित्त तप काल में कोई दोष होता है। गणधर मंत्र का जाप करने से सब दोष दूर होते हैं ।। ८४ ।। जो श्रावक तीनों संध्यायों में गणधर मंत्रों को और पंच परमेष्ठी वाचक मंत्रों को हमेशा सा है मेहता और प्रोक्षमार्ग को प्राप्त होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है ।। ८४ ।। णिच्च सामाइगायार पत्तदाण कियादरं । गिह वता खए पावं सुमण्वो खलु उच्चए ।। ८५ ॥ नित्य सामायिकाचारः, पात्रदाने कृतादरः । गृहवार्ता श्रितात्पापान, सभव्योमुच्यते खलु ।। ८५ ॥ तीनों समय पंच नमस्कार के जाप से, समस्त पाप नाश होय। इसमें कोई संशय नहीं कि, शुभाव भी होय ।। ८५ ॥ जो श्रावक आदर से तीनों संध्यायों - प्रातः, मध्यान्ह, सायं कालसामायिक करता है तथा श्रद्धा भक्ति से चारों प्रकार का पात्र दान करता है वह निश्चय से गृह कार्यों में पंचसूना दोष होते हैं उनसे छूट जाता है। अर्थात् उन दोषों की निवृत्ति हो जाती है ।। ८५॥ NAKOne । प्रायश्चित्त विधान- १०१
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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