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________________ प्रवचनसार: साथ कि ज्ञान कि ज्ञेयमिति व्यक्ति तम्हा गाणं जीवो शोयं दब्वं तिहा समक्खादं । दब्वं ति पुणो श्रादा परं च परिणामसंबद्ध ॥३६॥ जीव ज्ञान है इससे, त्रिकालगत द्रव्य ज्ञेय बतलाये । परिणामबद्ध प्रात्मा, तथा इतर द्रव्य यों मानो ॥३६॥ तस्माजज्ञान जीवो क्षेत्र द्रव्यं विधा रामाण्यातम् । द्रव्यमिति पुनरात्मा परश्च परिणामसंबद्धः ।। ३६ ।। यतः परिच्छेदरूपेण स्वयं विपरिणम्य स्वतंत्र एवं परिच्छिनत्ति ततो जीव एव ज्ञानमत्यद्रव्याणों तथा परिरगन्तुं परिच्छेत्तुं चाशक्तेः । ज्ञेयं तु वृत्तवर्तमानतिष्यमाणविचित्रपर्याथपरम्पराप्रकारेण विधाकालकोटिस्पशित्वादनाद्यनन्तं द्रव्य, तत्तु ज्ञेयतामापद्यमानं धात्मपरवि. कल्पात । इष्यते हि स्वपरपरिच्छेदकत्वादवबोधस्य बोध्यस्येवंविधं वैविध्यम् । नन स्वात्मनि क्रियाविरोधात कथं नामात्मपरिच्छेदकत्वम् । का हि नाम क्रिया को दृशश्च विरोध: ? क्रिया नामसंज-तणाण जीव पोय बम्व तिहा समक्खाद ति पुणो आदा पर च परिणामसम्बद्ध । धातुसजशा अवबोधने, सं बंध बन्धने । प्रातिपदिक..... तत् ज्ञान जीव ज्ञेय द्रव्य त्रिधा समास्यात इति पुनस आसन पर च परिणामसम्बद्ध । मूलधातु -- ज्ञा अवबोधने । उभयपदविवरण ...तम्हा तस्मात्-पंचमी ए० 1 स्पर्श करता हुआ होनेसे अनादि अनन्त द्रव्य है। यह ज्ञेयको प्राप्त स्व और पर ऐसे दो भेद से दो प्रकारका है । ज्ञान स्वपरज्ञायक है, इसलिये ज्ञेयकी ऐसी द्विविधता मानी जाती है। प्रश्न--अपने में क्रियाके हो सकनेका विरोध होनेसे आत्माके स्वज्ञायकता कसे घटित होती है ? उत्तर- कौनसी क्रिया है, और किस प्रकारका विरोध है ? जो यहाँ प्रश्नमें विरोधी क्रिया कही गई है. वह या तो उत्पत्तिरूप होगी या ज्ञप्तिरूप होगी। उत्पत्तिरूप किया 'कोई स्वयं अपनेमें से उत्पन्न नहीं हो सकता' इस ग्रागम कथनसे विरुद्ध ही है; परन्तु ज्ञप्तिरूप किया का प्रकाशन नियासे हो प्रत्यवस्थितपना होनेसे ज्ञप्तिक्रिया में विरोध नहीं आ सकता। जैसे कि प्रकाश्यताको प्राप्त परको प्रकाशित करते हुए प्रकाशक दीपको स्व प्रकाश्यको प्रकाशित करने के सम्बन्ध में अन्य प्रकाशकको अनावश्यकता नहीं होती, क्योंकि उसके स्वयमेव प्रकाशन क्रियाको प्राप्ति है; इसी प्रकार ज्ञेयपनेको प्राप्त परको जानते हुए ज्ञायक प्रात्माको स्वज्ञेयके जानने के सम्बन्धमें अन्य ज्ञायककी आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि स्वयमेव ज्ञान क्रियाको वहाँ प्राप्ति है । प्रश्न--- प्रात्माके द्रव्यज्ञानरूपता और सब द्रव्योंके प्रात्मज्ञेयरूपता, कैसे बन जाती है ? उत्तर-परिणाम वाले होनेसे प्रात्माके द्रव्यज्ञानरूपपना और द्रव्योंके प्रात्मजयरूपपना सही है । चूंकि प्रात्मा और द्रव्य परिणामोसे संबद्ध हैं, इस कारण प्रात्माके ॐ 3
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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