SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचनकारः veeWARISTIBISAWAIIMalotricks 885 प्रथात्मज्ञानयोरेकत्वान्यत्वं चिन्तयति -.. गाणं अप्प त्ति मदं वदि गााग विणा | अप्पाम् । तम्हा गणाग अप्पा अप्पा गांव अगवा ॥२७॥ कहा ज्ञान प्रात्मा है, क्योंकि न है शान बिना आत्माके । इससे ज्ञान है आत्मा, प्रात्मा ज्ञान द अन्य भी है ।।२७।। झानमात्मेति मा स्तंत ज्ञानं विभा नात्मानम : AERA जानमात्मा आत्मा ज्ञान या अपहा : २७ यतः शेषसमस्तचेतनाचेतनवस्तु समवायसम्बन्ध निकमुक्तयाऽनाद्यनंतस्त्र भावसिद्ध समदायसंबन्धकमात्मानमाभिमुख्येनावलाव्य प्रवृत्तस्यात् तं विना प्रात्मानं ज्ञानं न धारयति, ततो ज्ञानमात्मैव स्यात् । आत्मा त्वनंतधर्माधिष्ठानत्वात् ज्ञानधर्मद्वारेण ज्ञान मन्य धर्मद्वारेणान्य. नामसंज्ञ.....याण अप नि मद गरण विणा अराण अप्प अग। धातसंज्ञ... मन्न अबवोधने. वत्त बर्तने । प्रातिपदिक --- ज्ञान आत्मन् इति मत जान दिनान आत्मन् त णाण अश्य गाण अभ्य । मूलधातु---वृतु वर्तन, जा अवबांधने । उभयपदविवरण ...णाण ज्ञान-प्रए | अप्पा आत्मा शाण जान-प्र०प० | अप्पा आत्मा--प्र०ए| नि रूप भी है। टोकार्थकि शेष समस्त चेतन तथा अचेतन परतुनोंके साथ समवायसम्बन्ध न होनेसे तथा अनादि अनंत स्वभावसिद्ध समवायसम्बंधमय एक प्रात्माका अति निकटाया (अभिन्न प्रदेशरूपसे) अवलम्बन करके प्रवर्तमान होनेसे आत्मके बिना ज्ञान अपना अस्तित्व नहीं रख सकताः इसलिये ज्ञान प्रात्मा ही है । परन्तु प्रात्मा ग्रनंत धर्मों का आधार होनेसे ज्ञानधर्मके द्वारा ज्ञान है और अन्य धर्मके द्वारा अन्य भी हैं । और फिर यहाँ अनेकान्त बलवान है । यदि एकान्तसे ज्ञान प्रात्मा है यह माना जाय तो ज्ञान गुण प्रात्मद्रव्य हो जाने हानका प्रभाव हो जायेगा, और ऐसा होने से प्रात्माके अचेतनता पा जायेगी अथवा विशेष । गुणका अभाव होनेसे प्रात्माका अभाव हो जायेगा । यदि सर्वथा प्रात्मा ज्ञान है यह माना जाय तो निराश्रयताके कारण ज्ञानका प्रभाव हो जायेगा अथवा आत्माकी शेष पर्यायोंका प्रभाव हो जायेगा, और उनके साथ ही अधिनाभावी सम्बंध वाले आत्माका भी प्रभाव हो । जायेगा। . प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें ज्ञानमुखेन प्रात्माको सर्वगत बताया गया था। अब आत्मा और ज्ञान के एकत्व व अन्यत्वका इस गाथामें वर्णन किया गया है । तथ्यप्रकाश-(१) प्रात्मपदार्थ के बिना ज्ञान अपना स्वरूप नहीं पाता, अत: ज्ञान प्रात्मा ही है । (२) प्रात्मा अनंतधर्मात्मक है, उन अनंत धमोंमें एक ज्ञान भी धर्म है । (३) प्रात्मा अनंत धर्मोका प्राश्रय होनेसे जैसे ज्ञान प्रात्मा है वैसे ही दर्शन सुख प्रादि भी प्रात्मा
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy