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________________ सहजानंदशास्त्रमालाया गृहस्थधर्मात् श्रामण्यात् प्रच्यवते । अतो या काचन प्रवृत्तिः सा सर्वथा संयमाविरोधेनेत्र विधाया । प्रवृत्तावपि संयमस्यैव साध्यत्वात् ।।२५० ॥ ४७६ भवति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । सात्रयाणं श्रावकाणांपाठी बहु० से स्यात्-विधी अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । विरुक्ति-धर्म श्रृणोति अस्सी श्रावकः ( + न ) । समास-कायस्य खेदः कायखेदः तम् कायखेवम् ॥२०॥ होती हैं" हारित किया गया था। अब इस गाथामें प्रवृत्तिके संयमविरोधित्वका निषेध किया गया है अर्थात् श्रमणको प्रवृत्ति संयमविरोधी नहीं होना चाहिये वह विदित कराया गया है । तथ्य प्रकाश- - ( १ ) जो साधु दूसरे श्रमणोंकी शुद्धात्मवृत्तिरक्षा के भाव भैयावृत्य करे, किन्तु उसमें अपने संयमको विराधना कर डाले तो वह श्रामण्यसे च्युत हो जाता है, क्योंकि हमें प्रवेश हो गया । ( २ ) षट् कायके जीवको जिसमें खेद पहुंचे वह प्रवृत्ति संयमविरोधी कहलाती है । (३) श्रमणको वैयावृत्त्यादि कार्य में भी संयमको रंध भी विराधना करनी चाहिये । (४) नैयावृत्यादि प्रवृत्ति में भी श्रमणों को संयम ही साध्य है । सिद्धान्त - ( १ ) शुभोपयोगी चारित्र में प्रवृत्ति संयमप्रधान हो होती है । दृष्टि-१- क्रियानय ( १६३ ) | प्रयोग -- यावृत्त्यादि कार्य में भी प्रवृत्ति इस विधिसे करना जिसमें किसी जीवकी हिंसा न हो २५०॥ प्रवृत्तिके दो विषयविभाग दिखलाते हैं- [यद्यपि अल्पः लेपः ] यद्यपि रूप लेप होता है तथापि [ साकारानाकारचर्यायुक्तानाम् ] साकार - अनाकार चर्यामुक्त [जैनानां] जिनभार्गानुसारी आवक व [ अनुकम्पया ] मुनियोंका अनुकम्पासे [ निरपेक्षं ] निरपेक्ष [ उपकार करोतु ] उपकार करें। तात्पर्य -- भूमिकानुसार जिनमार्गानुसारियोंका उपकार करना शुभोपयोग है । टीकार्थ — जो अनुकम्पापूर्वक परोपकारस्वरूप प्रवृत्ति है, वह अनेकान्त के साथ मैत्रीसे जिनका चित्त पवित्र हुआ है व शुद्धात्मा के ज्ञान दर्शन में प्रवर्तमान वृत्तिके कारण साकार - अनाकार चर्याबाले हैं ऐसे शुद्ध जैनोंके प्रति शुद्धात्माकी उपलब्धि के अतिरिक्त अन्य सबकी अपेक्षा किये बिना ही प्रल्प लेपवाली होनेपर भी उस प्रवृत्तिके करनेका निषेध नहीं है; किन्तु पाली होनेसे सबके प्रति सभी प्रकारसे वह प्रवृत्ति प्रनिषिद्ध हो ऐसा नहीं है, क्योंकि वहाँ उस प्रकारकी प्रवृत्तिसे परके और निजके शुद्धात्मपरिणतिको रक्षा नहीं हो सकती ।
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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