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________________ प्रवचनसार---सप्तदशाङ्गो टोका। अथ शुभोपयोगिश्रमणानां प्रवृत्तिमुपदर्शयति वंदणमंसोहिं अब्भुढाणाणुगमणपडिवत्ती। समोसु समावण यो ण णिदिदा रायचरियम्हि ॥२४७॥ श्रमरणोंके प्रति सबिनय, वंदन उत्थान अनुगमन प्रणयन । प्रतिपत्ति श्रमापनयन, निन्दित नहिं रागचर्याम ॥२४७॥ वन्दननमस्करणाभ्यामभ्युत्थानानुगमनप्रतिपत्तिः । श्रमणेषु श्रमापनयो न निन्दिता रागचर्यायाम् ।।२४।। शुभोपयोगिनां हि शुद्धात्मानुरागयोगिचारित्रतया समधिगतसुद्धात्मवृत्तिषु श्रमशोषु चन्दननमस्करणाभ्युत्थानानुगमन प्रतिपत्तिप्रवृत्तिः शुद्धात्मवृत्तित्राणनिमित्ता धमापनयननवृत्ति.श्च न दुष्येत् ॥२४७॥ नामसंज्ञ.---वंदणणमंराण अन्भुदाणाणुगमणपडि वत्ति समण समावणाअाणिदिदो रायरिय । धातुसंज्ञ-पडि पद गतौ । प्रातिपदिक--वन्दननमस्करण अभ्युत्थानानुगमन प्रतिपत्ति श्रमण श्रमाय न नि. न्दिता रागचर्या । पूलधातु-प्रति पद गतौ । उभयपदविवरण-- बंदणणमसणेहि-तृतीया बहु । धन्नदमस्करणाभ्यां-तृतीया हि । अदभुट्टामापुगमणपडिवत्ती अभ्युत्थानानुगमन प्रतिपत्तिः प्रथमा एक० । समपेसु श्रमशोषु-स० बहु० । समावणओ श्रमापनयः-प्रथमा एक० । पम-अव्यय । णिदिदा-प्रथमा एव । रायचरियम्हि रागचर्यायां-सप्तमी एकवचन । निरुक्ति-प्रतिपादनं प्रतिपत्तिः (प्रति पद + कितन) । समास-वदनं च नमस्करणं वंदनन मस्कररो ताभ्यां वं0 11२४७॥ ननमस्कररणाभ्यां वन्दन-नमस्कारके साथ [अभ्युत्थानानुगमनप्रतिपत्तिः] अभ्युत्थान और अनुगमनरूप विनीत प्रवृत्ति करना तथा [श्रमापनयः] उनका श्री दूर करना [रागर्यायाम] रागचमि [न निन्दिता] निन्दित नहीं है। तात्पर्य-शुभोपयोगचारित्रमें श्रमणोंका वन्दन विनय प्रादि करना निन्दित नहीं । टोकार्थ--शुभोपयोगियोंके शुद्धात्माके अनुरागयुक्त चारित्र होनेसे शुद्धात्मपरिगति प्राप्त की है जिनमें ऐसे श्रमणों के प्रति वन्दनन्नमस्कार-अभ्युत्थान अनुगमनरूप विनीत वर्तन की प्रवृत्ति तथा शुद्धात्मपरिगतिकी रक्षाको निमित्तभूत जो श्रम दूर करनेकी यावत्यरूप प्रवृत्ति है, वह शुभोपयोगियों के लिये दूषित नहीं है । प्रसङ्गविवरण- अनन्तरपूर्व गाथा शुभोपयोगी श्रमणका लक्षण कहा गया था। अब इस गाथा शुभोपयोगी श्रमणोंकी प्रवृत्ति बताई गई है। तथ्यप्रकाश--(१) शुभोपयोगी श्रमणोंका शुद्धात्मानुरागयोगो चारित्र होता है, इस कारण उनके रागचर्या होती है जो कि इस भूमिकामें निन्दित नहीं है। (२) शुभोपयोगी श्रमण रागचर्या में अन्य श्रमणोंके प्रति वन्दना, नमस्कार, अभ्युत्थान, अनुगमनकी प्रतिपत्ति PawoonमयमmommenterimeHimammy
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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