________________
LOORNARGIBIMANDosthapanास
REGMIntentiomhindi
सहजानन्दशास्त्रमालायां
P
Himala
wwwwwwwmate
न धकाग्र घमन्तरेण श्रामण्यं सिद्धयत्, यतो नैकाग्रघस्यानेकमेवेदमिति पश्यतस्तथाप्रत्ययाभिनिविष्टस्यानेकमेवेदमिति जानतस्तथानुभूतिभावितस्यानेकमेवेदमितिप्रत्यय विकल्पव्यावृत्तचेतसा संततं प्रवर्तमानस्य तथावृत्तिदुःस्थितस्य चैकात्मप्रतीत्यनुभूतिवृत्तिस्वरूपसम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र. परिणतिप्रवृत्तशिज्ञप्तिवृत्तिरूपात्मतत्त्वैकाग्रचाभावात शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिरूपं श्रामण्यमेव न स्यात् अतः सर्वथा मोक्षमापिरनाम्न: श्रामण्यस्य सिद्धये भगवदह सर्वज्ञोषज्ञे प्रकटानेकान्तके. एक० । णिच्छिदस्स निश्चितस्य-षष्ठी एक० । अत्येसु अर्थेषु-सप्तमी बहुवचन । आगमदो आगमतः तदो तत:-अव्यय पंचम्यर्थे । निरुक्ति-आ गमनं आगमः (आ गम् + घ) गम्ल गतो, अतिशयेन वृद्धा इति कि वास्तव में प्रागमके बिना पदार्थों का निश्चय नहीं किया जा सकता; क्योंकि प्रागमके ही त्रिकाल प्रवृत्त है उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यरूप तीन लक्षण जिसके ऐसे सकलपदार्थसार्थके यथातथ्य ज्ञान द्वार। सुस्थित अंतरंगसे गंभीरपना है। और, पदार्थोके निश्चयके बिना एकाग्रता सिद्ध नहीं होती; क्योंकि, पदार्थों का निश्चय जिसके नहीं है ऐसे जीबके व कदानित निश्चिकोर्षासे प्राकुलताप्राप्त थिसके कारण सर्वतः हमाडोल जीवके अत्यन्त तरलता होती हैं। कदाचित करने की इच्छारूप जन रसे परवश होते हुए व विश्वको (समस्त पदार्थोंको) स्वयं सर्जन करनेकी इच्छा करते हुए तथा समस्त पदार्थों को प्रवृत्तिरूप परिणत हुए जीबके प्रति क्षण क्षोभकी प्रगटता होती है, और कदाचित् भोगनेकी इच्छासे भावित होते हुए व विश्वको स्वयं भोग्यरूप ग्रहण करके रागद्वेषरूप दोषसे कलुषित चित्तवृत्तिके कारण वस्तुप्रोंमें इष्ट पनिष्ट विभागके द्वारा द्वैतको प्रवर्तित करते हुए व प्रत्येक वस्तुरूप परिणाम रहे जीवके अत्यन्त अस्थिरता होती है, अत: उपरोक्त तीन कारणोंसे उस अनिश्चयो जीवके व निष्क्रिय और निर्मोग भगवान प्रात्माको-जो कि युगपत् विश्वको पो जाने वाला होनेपर भी विश्व. रूप न होने से एक है उसे नहीं देखने वालेके सतत व्यग्नता ही होती है । और एकाग्रताके बिना श्रामण्य सिद्ध नहीं होता; क्योंकि जिसके एकाग्रता नहीं है वह जीव 'यह अनेक ही है। ऐसा देखता हुमा उस प्रकारको प्रतीति में अभिनिविष्ट होता है; 'यह अनेक हो है' ऐसा जानता हुना उस प्रकार की अनुभूतिसे भावित होता है, और यह अनेक ही है' इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ के विकल्पसे छिन्नभिन्न चित्त सहित सतत प्रवृत्त होता हुप्रा उस प्रकारकी वृत्तिसे दुःस्थित होता है, इसलिये उसे एक प्रात्माको प्रतीति-अनुभूति-वृत्तिस्वरूप सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र परिणतिरूप प्रवर्तमान जो दृशि झप्तिवृत्तिरूप प्रात्मतत्त्वमें एकाग्रता है उसका प्रभाव होनेसे . शुद्धात्मतत्वप्रवृत्तिरूप श्रामण्य ही नहीं होता। इस कारण मोक्षमागं जिसका दूसरा नाम है ऐसे श्रामण्यको सर्वप्रकारसे सिद्धि करनेके लिये मुमुक्षु को भगवान् अर्हन्त सर्वज्ञ द्वारा प्राप्त शब्दब्रह्ममें—जिसका कि अनेकान्तरूपी ध्वज प्रगट है उसमें निष्णात होना चाहिये ।
TyrmimmmmmmmmmmmmmmwwwinemamaAIMIKIAMpmawaiawwwwwwwwwwwwwww Arvinamstricicia'NoniwwmanupamanmaswaminenwwmAyMItnawinnrvsn