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________________ नाम.DAIनIMIMIRELAIMER प्रवचनसार: spandane 1 SAREERS36malini dance अथोत्पादादित्रयं सर्वद्रव्यसाधारणत्वेन शुद्धात्मनोऽप्यवश्यंभावीति विभावयति उप्पादो य विणासो विजदि सव्वस्स अट्टजादस्स। पजाएगा द कवि अहो खलु होदि सब्भूदो ॥१८॥ संभव व्यय दोनों भी, रहते हैं सकल अर्थ सार्थोमें । पर्यायविवक्षासे, वे ही सद्भूत निश्चयसे ॥ १८ ॥ उत्पादश्च विनाशो विद्यते सर्वस्यार्थजातस्य । पर्यायेण तु केनाप्यर्थः खलु भवति सद्भुतः ।। १८ ।। यथाहि जात्यजाम्बूनदस्याङ्गदपर्यायेणोत्पत्तिष्टा । पूर्वव्यवस्थितांगुलीयकादिपर्यायेण च विनाशः । पीततादिपर्यायेण तूभयत्राप्युत्पत्तिविनाशावनासादयतः ध्र वत्वम् । एवमखिल नामसंज्ञ-उप्पाद य विणास सव्व अट्ठजाद पज्जाय दु क बि अट्ठ खलु सन्भूद। धातुसंज्ञ -- विज्ज सत्तायां । प्रातिपदिक-उत्पाद च विनाश सर्व अर्थजात पर्याय किम् अपि अर्थ खलु सद्भत । मलधातविद तत्तायां, भू सत्तायां। उभयपदधिवरण-~-उप्पादो उत्पादः विणासो विनाश:-प्रथमा एकवचन । विज्जदि विद्यते होदि भवति-वर्तमान अन्य पुरुष एक० क्रिया । सव्वस्स सर्वस्य अट्ठजादस्स अर्थजातस्य अब उत्पाद आदि तीनों (उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य) सर्व द्रव्यके साधारण है, इस. लिये शुद्ध आत्मा केवली भगवान और सिद्ध भगवानके भी अवश्यम्भावी है, यह विशेष रूपसे हुवाते हैं, व्यक्त करते हैं---[सर्वस्य] सर्व [अर्थजातस्य] सर्वपदार्थका [उत्पाद:] किसी पर्याय से उत्पाद [विनाशः च] और किसी पर्यायसे विनाश [विद्यते] होता है; [केन अपि पर्यायेरण तु] और किसी पर्यायसे [अर्थः] पदार्थ [खलु सद्भूतः भवति] वास्तवमें ध्र व है। तात्पर्य....प्रत्येक पदार्थ उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक है । टीकार्थ-जैसे कि उत्तम स्वर्णकी बाजू बन्दरूप पर्यायसे उत्पत्ति दिखाई देती है, पूर्व अवस्थारूपसे वर्तने वाली अंगूठी इत्यादिक पर्यायसे विनाश देखा जाता है, और पीलापन इत्यादि पर्यायसे दोनोंमें याने बाजूबन्द और अंगूठी में उत्पत्ति विनाशको प्राप्त न होनेसे ध्रौव्यत्व दिखाई देता है । इस प्रकार सर्व द्रव्योंके किसी पर्यायसे उत्पाद, किसी पर्यायसे विनाश और किसी पर्यायसे ध्रौव्य होता है, ऐसा जानना चाहिये । इस कारण शुद्ध आत्माके भी द्रव्यका लक्षणभूत उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यरूप अस्तित्व अवयम्भावी है । प्रसंगविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें शुद्धात्मस्वभावलाभकी अविनाशिता व कथंचित् उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तता बताई गई थी। अब इस गाथामें "उत्पादादित्रय सर्वद्रव्योंमें पाया जाता है सो शुद्धात्माके भी अवश्य होते हैं" यह वर्णन किया गया है। तथ्यप्रकाश-१- सभी द्रव्योंमें अपेक्षावोंसे उत्पाद व्यय ध्रौव्य एक साथ रहते हैं । २- जैसे- पुद्गलपिण्डका स्वर्णरूपसे उत्पाद, स्वर्णमिट्टी रूपसे नाश व पुद्गलपिण्डरूपसे ।
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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