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________________ Monitoriasboutoi m mun LAM प्रवचनसार--सप्तदशाङ्गी टीका ४१५ प्रथकान्तिकान्तरंगच्छेवत्वमुषविस्तरेणोपदिशति---- विध तम्हि णतिय मुच्छा ग्रारंभो वा असंजमो तस्स। तथ परदव्वम्भि रदो कधमप्पाग पसाधयदि ॥ २२१ ॥ परद्रव्यानरतके क्यों नहीं हो प्रारंभ मूर्छा असंयम । असदृष्टि वह कैसे, आत्माको सिद्धि कर सकता 1॥२२१॥ - कथं तस्मिन्नास्ति मुछा आरम्भो वा असंयमस्तस्य । तथा परद्रव्ये रतः कथमात्मानं प्रसाधयति १२२१॥ उपधिसद्भावे हि ममत्व परिणामलक्षणाया मुछायास्त द्विषयककर्मप्रकमपरिणामलक्षस्यारम्भस्य शुद्धात्मरूपहिसनपरिगामलक्षणस्यासंयमस्य बावश्यंभावित्वात्तथोपधिद्वितीयस्य परद्रव्यरतत्वेन शुद्धात्मद्रव्यप्रसाधकत्वाभावाच्च ऐकान्तिकारंगच्छेदत्वमुपधेरवधार्यत एव । इदमत्र तात्पर्यमेवंविधत्वमुपधेरवधार्य स सर्वथा संन्यस्तव्यः ।।२२१।। aanweamLANAKAIRA aarepren. minsooritywwwmumore KIRRIGAaminche PRER नामसकिन तण मूच्छा आरंभ वा असंजमत तध परदव्च रद कध अप्प । पान... अ सतायां प साह साधने । प्रातिपदिक-कथं तत् न मुच्छा आरम्भ वा असंयम तत् तथा परद्रव्य रत कथं आत्मतु.। मूलधातु--अस् भुवि, प माह साधने । उभयपदविवरण-विध कथं वा तव तथा ऋध कथंअध्यय । तम्हि तस्मिन् परदबम्मि' परद्रव्ये-सप्तमी एक अस्थि अस्ति पसाधयदि प्रसाधयति-वर्तमान अन्य एक क्रिया । मुच्छा मूळी आरंभी आरंभः असंजमो असंयमः रदो रत:-प्रथमा एकवचन । अण्णाणं आत्मान-द्वितीया एकवचन । निरुक्ति-मुच्छनं मुर्छा मुच्छ+ अच् + टाप मूर्च्छमोहमुच्छापयोः ।२२१॥ प्रसयमः] असंयम [कथं | कसे नास्ति नहीं है ? [तथा] तथा [परद्रव्ये रतः] परद्रव्य EM में लीन भिक्षु [आत्मानं] प्रात्माको [कथं] कैसे [प्रसाधयति साध सकता है ? तात्पर्य-परिग्रहको होनेसे मच्छी प्रारम्भ व असंयम होता है तब परद्रव्यमें रत वह भिक्षु प्रात्मसाधना नहीं कर सकता। टोकार्थ— निश्चित रूपसे उपधिक सद्भावमें ममत्वपरिणाम जिसका लक्षण है ऐसी मयी उपधि सम्बन्धी कर्मप्रक्रमका परिणाम जिसका लक्षण है ऐसा आरम्भ, अथवा शुद्धात्म. स्वरूपकी हिंसारूप परिणाम जिसका लक्षण है ऐसा असंयम अवश्यमेव होता ही है । तथा उपाधि जिसका द्वितीय हो उसके पर द्रव्यमें लीनता होनेके कारण शुद्धात्मद्रव्यको साधकताका प्रभाव होनेसे उपधिके ऐकान्तिक अन्तरंगछदपना निश्चित होता ही है । यहाँ यह तात्पर्य है कि उपधिका अन्तरंगछदपना निश्चित करके उसे सर्वधा छोड़ना चाहिये। प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें उपधिप्रतिषेधको अन्तरंगच्छेदप्रतिषेध कहा गया या। अब इस गाथामें विस्तारपूर्वक उपधिको अन्तरंगच्छेद बताया गया है । bumnnaronmenisemetermirkammercumendation
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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