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१२६ क्रिया व भाव तथा केवल भाव की अपेक्षासे १५५ आत्माको अत्यन्त विभक्त करने के लिये द्रव्यकी विशेषता
२४८ परद्रव्यके संयोग के कारणका स्वरूप १३० गुण-विशेषसे द्रव्य-विशेष होने का कथन २५० १५७ शुभोपयोग का स्वरूप
२६६ १३१ भूर्त और अमूर्त गणों का लक्षण तया संबंध ९५२ १५८ अशुभोपयोगका स्वरूप १३२ मूर्त पुद्गलद्रव्यका गुण
२५३ १५६ परद्र व्यसंयोगके कारणके विनाशका अभ्यास ३०२ १३३ अमूर्त द्रव्योंके गुण
२५६ १६० शरीरादि परद्रव्य में भी मध्यस्थताका प्रयोग ३०४ १३५ द्रव्यका प्रदेशवत्व और अप्रदेशवत्वरूप विशेष २५६ १६१ शरीर, वाणी और मनका परद्रव्यपना ३०६ १३६ प्रदेशी और अप्रदेशी द्रव्योंका निवासक्षेत्र २६१ १६२ आत्माके परद्रव्यत्वका अभाव और परद्रव्य १३७ प्रदेशवत्व और अप्रदेशवत्व किस प्रकारसे संभव है
कर्तृत्वका अभाव इसका प्रज्ञापन
२६३ १६३ परमाणद्रव्योंकी पिंडपर्यायरूप परिणति का
कारण १३८ कालाणु के एकप्रदेशित्वका नियम १३६ काल पदार्थ के द्रव्य और पर्याय
२६७ १६७ आत्मा पुदगलोके पिण्डका कर्ता नहीं ३१६ १४० आकाशके प्रदेशका लक्षण
२६६ १६८ आत्मा पुद्गलपिण्डों का लानेवाला नहीं ३१७ १४१ तिर्यप्रचय तथा ऊर्ध्वप्रचय
१६६ आत्मा पुदगलपिण्डों में कर्मत्व का करनेवाला १४२ कालपदार्थ के उत्पाद्व्यय ध्रौव्यकी सिद्धि १४३ सर्व वृत्यशोंमें कालपदार्थका उत्पादव्यय- १७० आत्मा पुद्गलद्रव्यात्मक शरीरका कर्ता नहीं ३२१ ध्रौव्यपना २७६ ७१ आत्माके शरीरत्वका अभाव
३२२ १४४ कालपदार्थ के प्रदेशमात्रत्वकी सिद्धि २७७ १७२ जीवका असाधारण स्वलक्षण
३२३ १४५ आत्माको विभक्त करने के लिये व्यवहार- १७३ स्निग्धरूक्षत्वका अभाव होने से अमुर्त आत्माके जीवत्वके हेतुका विचार
२८० बंध कैसे हो सकता है ? ऐसा पूर्वपक्ष । १४६ प्राण कौनसे हैं, उनका निर्देश
१७४ उपरोक्त पूर्वपक्षका उत्तर
१७५ भावबंधका स्वरूप १४७ प्राणोंका जीवत्वहेतुत्व और पोद्गलिकत्व २८४
१७६ भावबन्ध और द्रव्यबन्धका स्वरूप १४६ प्राणोंके पौद्गलिक कर्मका कारणग्ना १५० पौदगलिक प्राणोंको संततिकी प्रवृत्तिका
१७७ पुदगलबन्ध, जीवबन्ध और उन दोनों के
बन्धका स्वरूप अंतरंगहेतु २८८
३३४
१७८ द्रव्यबन्धका हेतु भावबन्ध १५१ पौगलिक प्राणोंकी संततिकी निवृत्तिका अंतरंगहेतु
१७६ भावबन्धका निश्चयबन्धपना
.२८६ १५२ आत्माको अत्यन्त विभक्तताकी सिद्धिके लिये
१८० रागद्वषमोहरूप विशिष्ट परिणामसे द्रव्यबंध ३३: व्यवहारजीवत्वकी हेतु भूत अनेकद्रव्यात्मक १८१ शुभ अशुभ विशिष्टपरिणामको तथा अविशिष्ट पर्यायोंके स्वरूपका उपवर्णन
२६१
परिणामको, कारण में कार्यका उपचार करके १५३ पर्यायके भेद
कार्यरूपसे बतलाना
३४० १५४ अर्थनिश्चायक अस्तित्वका स्वपरविभागके
१८२ जीवकी स्वद्र व्य में प्रवृत्ति और परद्र ध्यसे हेत के रूप में उद्योतन
२६४ निवृत्तिकी सिद्धि के लिये स्वपरविभाग
३४२
mer
२८२
३३१