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________________ प्रवचनसार-सर ROOTRAMERIERRORAN प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका . प्रय परिणामस्य द्रव्यबन्धसाधकतमरागविशिष्टत्वं सविशेष प्रकटयति परिणामादो बंधो परिणामो रागदोंसमोहजुदो। असुहो मोहपदोसो सुहो व असुहो हदि रागो ॥१८०॥ बन्ध परिणामसे है, परिणाम भि रागदपमोहसहित ।। द्वष मोह अशुभ हि है, शुभ व अशुभ राग दोधिध है ॥१८॥ परिणामाद्वन्धः परिणामो रागद्वेषमोहयुतः । अशुभौ मोहाद्वेषो शुभो वायुभो भवति रागः ।। १८० ।। द्रव्य बन्धोऽस्ति तावद्विशिष्टपरिणामात् । विशिष्टत्वं तु परिणामस्य रामद्वेषमोहमयत्वेन । तत्र शुभाशुभत्वेन ट्रैतानुवति । तत्र मोहद्वेषमयत्वेनाशुभत्वं, रागमयत्वेन तु शुभत्वं चाशुभत्वं च विशुद्धिसंक्लेशाङ्गत्वेन रागस्य द्वैविध्यात् भवति ।।१८०॥ नामसंज्ञ----परिणाम बंध परिणाम रागदोसमोहजुद अशुह मोहपदोस सुह व असुह राग । धातुसंज्ञ--- हव सत्तायां । प्रातिपदिक-परिणाम बन्ध परिणाम रागद्वेषमोहात अशुभ मोहद्वेष शुभ वा अशुभ संग। मूलधातु-भू सत्तायां । उभयपदविवरण- परिणामादो परिणामात-पंचमी एक० ! बंधो बन्धः परिणामो परिणामः रागदोस मोहजुदो रागद्वेषमोहयुत:-प्रथमा एक० । असुहो मोहोपदोसो-प्र० एक० । अशुभौ मोहह्मद्वेषौ-प्रथमा द्विवचन । सुहो शुभः असुहो अशुभ: रागो राग:--प्रथमा एक०। व-अव्यय । हवदि भवति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । निरुक्ति-योतिस्म इति युतः यु मिश्रणे । समासरागश्च द्वेषश्च मोहश्चेति रागद्वेषमोहाः तै: युतः रागद्वेषमोहयुतः ।।१८।। दो प्रकारका है, उनमें से मोह-द्वेषमयपनेसे तो अशुभत्व होता है, और रागमयपनेसे शुभत्व तथा अशुभत्व होता है, क्योंकि विशुद्धि तथा संक्लेशयुक्त होनेसे राम दो प्रकारका होता है । प्रसङ्गविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें भावबन्धको ही निश्चयतः बंध कहा गया था। अब इस गाथामें बताया गया है कि द्रव्यबन्धका हेतुभूत परिणाम शुभ व अशुभ ऐसे दो प्रकार तथ्यप्रकाश--(१) द्रव्यबन्धका कारण विशिष्ट परिणाम है, अविशिष्ट परिणाम नहीं । (२) परिणामको विशिष्टता रागद्वेषमोहमयपना होनेसे होती है । (३) मोहमय व द्वेषमय परिणाम अशुभ भाव है। (४) रागमय परिणाम शुभभाव भी हो सकता है व अशुभ भाव भी हो सकता है । (५) विशुद्धिका अङ्गभूत रागपरिणाम शुभभाव है । (६) संश्लेशका FA प्रजभूत रागपरिणाम अशुभ भाव है। सिद्धान्त-(१) विशुद्धि और संक्लेशका अङ्ग होनेसे रागपरिणाम शुभ व अशुभ दो प्रकारका है। (२) शुभ राग व अशुभराग दोनों ही भावबन्धरूप है । दृष्टि-- १- वैलक्षण्यनय (२०३)। २- सादृश्यनय (२०२) ।
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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