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________________ R A N AFRAMM २७६ सहजानन्दशास्त्रमालायां पथ सर्ववृत्त्यशेषु समयपदार्थस्योत्पादच्ययध्रौव्यवत्वं साधयति-.. एगम्हि संति समये संभवठिदिणासमण्णिदा अट्टा। समयस्स सव्वकालं एस हि कालाणुसब्भावो ॥१४३॥ एक समयमें होते, संभव व्यय ध्रौव्य सर्वद्रव्योंके । कालाणुमें भी ऐसा. स्वभाव है सर्वदा निश्चित ।।१४३॥ एकस्मिन् सन्ति समये संभवस्थितिनाशसंहिता अर्थाः । समयस्य सर्वकालं एप हि कालाणुसद्भावः ॥१४॥ अस्ति हि समस्तेष्वपि वृत्त्यंशेषु समयपदार्थस्योत्पादत्र्ययध्रीव्यत्वमेकस्मिन वृत्त्यशे तस्य दर्शनात्, उपपत्तिमच्चैतत् विशेषास्तित्वस्य सामान्यास्तित्व मन्तरेणानुपपत्तेः । अयमेव र समय यपदार्थस्य सिद्धयति सद्भावः । यदि विशेष सामान्यास्तित्वे सिद्धयतस्तदा त अस्तित्वमन्तरेगा। न सिद्धयतः क िवदपि ॥ १४३ ।। नामसंज्ञ---एग समय संभवठिदिणाससणिद अष्टु समय सख्यकाल एत हि कालाणुसब्भाव । धात संज्ञ - अस सत्तायां । प्रातिपदिक-एक समय संभवस्थितिनाशसंज्ञित अर्थ समय सर्वकाल एतक कि कालाशुसद्भाव । मूलधातु-अस् भुवि । उभयपदविवरण--एगम्हि एकस्मिन् समये-सप्तमी एका संभवठिदिणाससणिदा संभवस्थितिनारासज्ञिता; अट्ठा अर्थाः-प्रथमा बहु० । समयस्स समय स्य-पानी एक० । सव्वकाल-अव्यय विशेषण, एस एष; कालागुसब्भावो कालाणुसद्धाव:-प्रथमा एकवचन । निक क्ति-सं भवन संभवः, स्थानं स्थितिः, नशनं नाशः । समास-संभवश्च स्थितिश्च नाशश्च संभवस्थिति नाशा: तैः संज्ञिता: इति सं० ।। १४३ ।। सिद्ध नहीं होते। प्रसंगविवरण-अनंतरपूर्व गाथामें कालद्रव्यके ऊर्धप्रचयकी निरन्वयताका निराकरण किया था । अब इस गाथामें कालपदार्थका उत्पादव्ययध्रोव्यपना सिद्ध किया गया है । तथ्यप्रकाश--(१) समयनामक परिणमन विशेष अस्तित्व है । (२) विशेष अस्तिल सामान्य अस्तित्वके बिना नहीं होता। (३) समय नामक परिणमनविशेषका अपादानभूत सामान्य कालद्रव्य है । (४) कालद्रव्य समस्त समयोंमें उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त है। सिद्धान्त-(१) समयपरिणमन विनश्वर है । (२) समस्त वृत्त्यशोंमें कालवा । उत्पादव्ययध्रौव्यपना है। दृष्टि-१- सत्तागोणोत्पादव्ययग्राहक नित्य प्रशुद्ध पर्यायाथिकानय (३७) । - सत्तासापेक्ष नित्य अशुद्ध पर्यायाधिकनय (३८) । प्रयोग---समय नामक परिणमनविशेषसे अविनाभावो कालद्रव्यका परिचय पानेको । भांति भावरूप परिणमन विशेषसे अविनाभावी निज प्रात्मद्रव्यका परिचय पाकर परिणमनः vidminimilitarinkinitionindiainik anim - - - - - - - FASARAMAILS
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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