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________________ द २७४ सहजानन्दशास्त्रमालायां एन । तस्य खल्वेकस्मिन्नपि वृत्त्येशे समुत्पादप्रध्वं सौ संभवत: । यो हि यम्य वृत्तिमतो यस्मिन् । वृत्यंशे तद्वृत्त्यंश विशिष्टत्वेनोत्पादः । स एव तस्यैव वृत्तिमतस्तस्मिन्नेव वृत्त्यंशे पूर्ववृत्त्यशविशिः। ष्टत्वेन प्रध्वंसः । यद्येवमुत्पादव्ययावेकस्मिन्नपि वृत्त्यंशे संभवतः समयपदार्थस्य कथं नाम नि। एक० । जदि यदि वि अपि-अव्यय । जरस यस्य-पष्ठी एक । एकसमयम्हि एकसमये-सप्तमी एक समयस्स समयस्य-पष्ठी एक० । सो सः समओ समय: सहावसमवदिदो स्वभावसमस्थित:--प्रथमा एक GिA तात्पर्य-काल द्रव्य भी उत्पादव्ययधोव्यात्मक है। टीकार्थ-समय कालपदार्थका वृत्यंश है; उस वृत्यंगामें किसीके भी अवश्य उत्पादः। तथा विनाश संभवित हैं; क्योंकि परमाणुके अतिक्रमणके द्वारा उत्पन्न होनेसे वह समयरूपो । वृत्यंश कारणपूर्वक है। यदि उत्पाद और विनाश वृत्त्यशके ही माने जायें तो, वे युगपद है या क्रमश: ? यदि 'युगपत्' कहा जाय तो युगपतपना घटित नहीं होता, क्योंकि एक ही समय एकके दो विरोधी धर्म नहीं होते । यदि 'क्रमशः' कहा जाय तो क्रम नहीं बनता, क्योंकि वृत्त्यंशके सूक्ष्म होनेसे उसमें विभागका अभाव है । इस कारण कोई वृत्तिमान अवश्य ढूंढना चाहिये । और वह वृत्तिमान काल पदार्थ ही है। उसके वास्तव में एक वृत्त्यंशमें भी उत्पादक और विनाश संभव है; क्योंकि जिस वृत्तिमानके जिस वृत्त्यं शमें उस वृत्त्यंशकी अपेक्षासे जो उत्पाद है, वही, उसी वृत्तिमानके उसी वृत्त्य॑शमें पूर्व वृत्त्यंशको अपेक्षासे विनाश है। यदि इस प्रकार उत्पाद और विनाश एक वृत्त्यंशमें भी संभवते हैं तो काल पदार्थ निरन्वय कसे हो सकता है जिससे कि पूर्व और पश्चात् वृत्यंशकी अपेक्षासे युगपत् विनाश और उत्पादको प्राप्त होता हया भी स्वभावसे अविनष्ट और अनुत्पन्न होनेसे वह काल पदार्थ अवस्थित न हो। इस प्रकार एक वृत्त्यं शमें काल पदार्थ के उत्पादव्ययध्रौव्यवानप ना सिद्ध हुमा । प्रसङ्गविबरण-अनन्तरपूर्व गाथामें तिर्यक्प्रचय व ऊर्ध्वप्रचयका दिग्दर्शन कराते हुए कालद्रव्यके ऊध्वंप्रचयका विधान व तिर्यकप्रचयका निषेध किया गया था। अब इस माथा में यह बताया गया है कि कालद्रव्यका ऊर्ध्वप्रचय निरन्वय नहीं है। तथ्यप्रकाश-(१) कालद्रव्यका अविभागी परिणमन समय है। (२) प्रत्येक समय परिणमन एक एक समय ही रहता है, अतः समय परिणमन तो उत्पन्न और नष्ट होता रहता । है, किंतु समय पर्यायका अपादानभूत कालद्रव्य ध्र ब ही रहता । (३) समय परिणमन तो वृत्त्यंश है और कालद्रव्य वृत्तिमान है, तभी एक कालद्रव्यमें समय नामक वृत्त्यंशोका उत्पाद व्यय संभव है । (४) एक ही समय में कालद्रव्यके वर्तमान समय परिणामनकी अपेक्षा उत्पाद । है व पूर्वसमयपरिणमनकी अपेक्षा विनाश है । (५) यदि कालद्रव्य न माना जाय, मात्र समय RA SE S area sinationshianmiame wayamantriesses
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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