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________________ واب सहजानन्दशास्त्रमालाया द्रव्येरनेकप्रदेशत्वशक्तियुक्त प्रदेशत्वापसा द्विबहुपदेशत्वाच्चास्ति तिर्यक्प्रचयः । न पुन, कालस्य शक्त्या व्यक्त्या चैक प्रदेशत्वात् । ऊर्ध्व प्रचयस्तु त्रिकोटिस्पशित्वेन सांशत्त्राद्रव्यवृत्तेः सर्वद्रव्याणामनिवारित एव । अयं तु विशेषः समय विशिष्टवृत्तिप्रचयः शेषद्रव्याणामूर्ध्वप्रचयः समयप्रचयः एव कालस्योर्ध्वप्रचयः । शेषद्रव्याणां वृत्तेहि समयादर्थान्तरभूतत्वादस्ति समयवि शिष्टत्वम् । कालवृत्तेस्तु स्वतः समयभूतत्वात्तन्नास्ति ॥ १४१ ॥ 1 काल | मूलधातु - अस भुवि । उभयपदविवरण एक्को एकः प्र० एक० व वाय च च हि त्ति इतिअव्यय । दुगे - प्र० बहु० । द्वौ प्र० द्विवचन बहुगा बहुतः संखातीदा संख्यातीताः अयंता अनन्ताः पदेसा प्रदेशाः - प्रथमा बहुवचन । दव्वाणं द्रव्याणां षष्ठी बहु० समओ समय :-प्र० एक० । कालरस कालस्यपष्ठी एक० । संति-वर्तमान अन्य पुरुष बहुवचन । निरुक्तिति इति एक बहन बहुः । समास (संख्यां श्रतीताः संख्यातोता ने अन्तः येषा ते अनन्ताः ॥२४१।। तात्पर्य -- कालद्रव्य के अनेक प्रदेश न होनेसे तिर्यत्रप्रचय नहीं है, समय होनेसे ऊर्ध्व प्रचय ही है । टोकार्थ - प्रदेशोंका समूह तिर्यक्प्रचय और समयविशिष्ट वृत्तियों का समूह ऊर्ध्वप्रचय कहलाता है । वहाँ प्रकाशके ग्रवस्थित अनन्तप्रदेश होनेसे धर्म तथा सबके अवस्थित असंख्य प्रदेश होनेसे जीवके अनवस्थित असंख्य प्रदेश होनेसे श्रोर पुद्गलके द्रव्यतः अनेक प्रदेशिवकी शक्ति से युक्त एकप्रदेश वाला होनेसे तथा पर्यायतः दो अथवा बहुत प्रदेश वोला होनेसे उन सबके तिर्यक्प्रचय है; परन्तु कालके तिर्यक्प्रचय नहीं है, क्योंकि वह शक्ति तथा व्यक्तिको अपेक्षासे एक प्रदेश वाला है। ऊर्ध्वप्रचय तो सर्वद्रव्योंके अनिवार्य हो है, क्योंकि द्रव्यकी वृत्ति भूत, वर्तमान और भविष्य ऐसे तीनों कालोंको स्पर्श करती है, इसलिये अंशोंसे युक्त है । परन्तु इतना अन्तर है कि समयविशिष्ट वृत्तियोंका प्रचय कालको छोड़कर शेष द्रव्योंका ऊर्ध्वप्रचय है, और समयका प्रचय कालद्रव्यका ऊर्ध्वप्रचय है क्योंकि शेष द्रव्योंकी वृत्ति समयसे अन्य है, इस कारण शेष द्रव्योंकी वृत्ति समयविशिष्ट है, परन्तु कालद्रव्यकी वृत्ति तो स्वतः समयभूत होनेसे समय विशिष्ट नहीं है । 1 प्रसंगविवरण --- प्रनन्तरपूर्व गाथामें कालद्रव्य के बाह्य आधारभूत प्राकाशप्रदेशका लक्षण कहा गया था। अब इस गाथा में तिर्यक्प्रचय व ऊर्ध्वप्रचयका दिग्दर्शन कराते हुए बताया गया है कि कालद्रव्य के तिर्यक्प्रचय नहीं होता, क्योंकि कालद्रव्य एकप्रदेशी ही है । तथ्यप्रकाश - ( १ ) प्रदेशोंका समूह तिर्यक्प्रचय कहलाता है । ( २ ) समय समय में होने वाली पर्यायोंका समूह ऊर्ध्वप्रलय कहलाता है । ( ३ ) आकाशद्रव्य के अवस्थित अन्त प्रदेश होनेसे तिर्यक्प्रचय है । ( ४ ) धर्मद्रव्य व द्रव्य श्रसंख्यातप्रदेश होनेसे तिर्यक्प्रचय
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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