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________________ २३० गजानन्दास्त्रमालायां ! शकल्पनमाकाशस्थ, सर्वेषामशूनामवकाशदानस्थान्यथानुपपत्तेः । यदि पुनराकाशयांशा न स्यु रिति मतिस्तदाङ्गुलीयुगलं नभसि प्रसायं निरूप्यतां किमेकं क्षेत्रं किमनेकम् । एकः चेटिकमभिन्नांशा विभागक द्रव्यत्येन किं वा भिन्नांशाविभागकद्रव्यत्वेन प्रभिन्नांशाविभागकद्रव्यत्वेन सेत् येननिकस्था बगुले क्षेत्र तेनांशेनेतरस्या इत्यन्यतरांशाभात्रः । एवं द्रथ वंशानामभावादाकाशस्य परमाणोरिव प्रवेशवित्वम् । भिन्नांशाविभागकद्रव्यत्वेन चेत् प्रविभागकद्रव्यस्यांश कल्पनमायतम । श्रनेकं चेत् किं सविभागानेकद्रव्यत्वेन किं वाऽविभागद्रव्यत्वेन । सविभागा नेकद्रव्यत्वेन चेत् एकद्रव्यस्याकाशस्यानन्तद्रव्यत्वं प्रविभागक द्रव्यत्वेन देतु प्रविभागक द्रव्य स्यांशकल्पनमायातम || १४० ॥ *************** J मूलधातु-शक्लू शक्तौ । उभयपदविवरण आगास आकाशं अगुणिविट्ट अणुनिविष्टं प्रथमा एक आगासपदेसणया आकाशप्रदेशसंशय-तृ० एक० भणिदं मणितं प्रथमा एक कृदन्त क्रिया । सन्वेसि सर्वेषां अपूर्ण अणूनष्ठ बहु० तं तत्प्र० एक० । अवगास अवकाश-द्वि० एक० । सक्कदि शक्नोति वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया देदुं बातुं - अव्यय हेत्वर्थ कृदंत | निरुक्ति-संज्ञायते अनया इति संज्ञा, अवकाश अवकाशः । समास-अणुना निविष्टं अणुनिविष्टम् आकाशस्य प्रदेश: आकाशप्रदेश तस्य संज्ञा तथा ।। १४० ।। बताइये कि दो 'उंगलियोंका एक क्षेत्र हे या अनेक ? यदि एक है तो अभिन्न अंशों वाला विभाग एक द्रव्यपता होनेसे दो अंगुलियोका एक क्षेत्र है या भिन्न श्रंशों वाला श्रविभाग एकद्रव्यपता होनेसे यदि 'अभिन्न अंश वाला अविभाग एकद्रव्यपता होनेसे दो अंगुलियोंका एक क्षेत्र है' ऐसा कहा जाय तो जो अंश एक अंगुलिका क्षेत्र है वही अंश दूसरी अंगुलिका भी है, इसलिये दो में से एक श्रंशका प्रभाव हो गया । इस प्रकार एक से अधिक अंशोंका अभाव होनेसे प्रकाश परमाणुकी तरह प्रदेशमात्र सिद्ध होगा । यदि यह कहा जाय कि 'ग्राकाश भिन्न अंशों वाला विभाग एक द्रव्य है' इसलिये दो अंगुलियों का एक क्षेत्र है तो ठीक ही है, प्रविभाग एक द्रव्यमें अंश कल्पना बन ही गई । यदि यह कहा जाय कि दो अंगुलियोंके 'अनेक क्षेत्र है' अर्थात् एकसे अधिक क्षेत्र हैं, एक नहीं तो बतायें कि 'आकाश खंडरूप अनेक द्रव्य है' इस कारण दो अंगुलियोंके प्रनेक क्षेत्र हैं या आकाशके प्रविभाग एकद्रव्यपना होनेपर भी दो अंगुलियोंके अनेक क्षेत्र हैं ? यदि सविभाग श्रतेक द्रव्य होनेसे माना जाय तो आकाश के अनन्तपना प्रसक्त हो जायगा । यदि अविभाग एक द्रव्य होनेसे माना जाय तो भाग एकद्रव्यमें अंशकल्पना या ही गई । प्रसङ्गविवरण --- प्रनन्तरपूर्व गाथामें काल पदार्थके द्रव्य व पर्यायका ज्ञान कराया गया था । अब इस गाथामें कालद्रव्य के बाह्य आधारभूत प्रकाशप्रदेशका लक्षण बताया गया
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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