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________________ २६८ सहजानन्द्रशास्त्रमालायां स तस्य कालपदार्थस्य पर्यायस्ततः एवंविधालयात वृत्तिवृत्तत्वेन व्यक्तिनित्यत्वे यो र्थः तत्तु द्रव्यम् । एवमनुत्पन्नाविध्वस्तो व्यसमयः उत्पन्नप्रध्वंसी पर्यायनः । श्रशः समयोऽयमाकाशप्रदेयाख्यानंशत्वान्ययानुपपतेः । न चैक्रममयेन परमाणोरालोकान्तगमनेऽपि सम यस्य साशत्वं विशिष्ट गतिपरिणामाद्विशिष्टात्रगाहपरिणामत्रत् । सत्राहि-यथा विशिष्टावगाह परिणामादेकपरमास्तुपरिमाणोऽनन्तपरमाणुस्कन्धः परमाशोरनंशत्वात् पुनरप्यनन्तांशत्वं न साधयति तथा विशिष्ट गतिपरिणामादिककालाच्या तिका काशप्रदेशातिक्रमणपरिमाणावच्छि तकसमये नै कस्माल्लोकान्ताद्वितीयं लोकान्तमाक्रामतः परमाप्रसंख्ययाः काला रणवः समयस्थानंशत्वादसंख्येयांशत्वं न साधयन्ति ।। १३६ । , यत् अर्थ तत्काल समय उत्पन्नप्रध्वंसिन् । मूलधातु उत् पद पक्षी प्रध्वंसु अवससने । उभयपदविक रण-यदिवददो व्यतिपततः पष्ठी एक० । व देस देश- हि एक तस्सम तत्समः समय समयः श्र० एक । तदो ततः अभ्यय पंचस्वर्थे परों पर पुग्न पूर्वः जो यः अल्थो अर्थ सो सः अत्यो अर्थ: कालो कालः समय समयः उपपसी उत्पन्न प्रथमा एकवचन । निरुक्ति-अयंते इति अर्थः । समास (तस्य समः तत्समः । १३६ ॥ तरह विशिष्ट गतिपरिणाम होता है। स्पष्टीकरण जैसे विशिष्ट श्रवगाहपरिणामके कारण एक परमाणु के परिमाणके बराबर अनन्त परमाम्मुग्रोंका स्कंध परमाणुको भ्रंशरहितता होने से परमाणुके फिर और ग्रनन्तु अंशोंको सिद्ध नहीं करता, उसी प्रकार एक काला से व्याप्त एक श्राकाशप्रदेश के प्रतिक्रमणके मायके बराबर एक 'समय' में परमाणु विशिष्ट गतिपरिणाम के कारण लोकके एक छोरसे दूसरे छोर तक जाता है तब उस परमाणुके द्वारा उलंघित होते. वाले असंख्य काला 'समय' के प्रसंख्य अंशोंको सिद्ध नहीं करते, क्योंकि 'समय' निरंश हैं। प्रसंग विवरण ---- अनन्तरपूर्व गाथामें कालद्रव्यको एकप्रदेशी बताया गया था। अब इस गाथामें काल पदार्थके द्रव्य और पर्यायका ज्ञान कराया गया है । तथ्य प्रकाश - ( १ ) एक एक समयरूप परिणमन जिस द्रव्यसे निकलता है वह काल द्रव्य है और वह अनादि अनन्त है । ( २ ) कालद्रव्य असंख्यात हैं । (३) कालद्रव्यकी प्रतिसमयकी समय नामक पर्याय उत्पन्न होती है और नष्ट हो जाती है । ( ४ ) ग्राकाशका एक एक प्रदेश नंश है, उनपर स्थित प्रत्येक कालद्रव्य अनंश हैं, प्रत्येक काल पदार्थों की समय समय : हो समय नामक पर्याय भो अनंश है। (५) अनेक परमाणु एक प्रदेशपर ठहर जांय तो इससे प्रदेशकी अनंशता समाप्त नहीं होती, क्योंकि अनेक परमाणुवोंका कभी एक प्रकाशप्रदेशपर रहना बने तो वह विशिष्ट श्रवग्राह शक्तिका प्रताप है । (६) परमाणु एक समय में लोकपर्यन्त गमन कर जाय अर्थात् ७ राजू या १४ राजू गमन कर जाय तो इससे समय पर्यायकोनं
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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