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________________ २४८ अथ क्रियाभावतद्भावविशेषं निश्चिनोति--- सहजानन्दशास्यमालायां उप्पादडिदिभंगा पोग्गलजीवप्पगस्स लोगस्स | परिणामादो जायंते संघादादो च भेदादो ॥ १२६॥ युद्गलजीवात्मक इस लोक हि के परिणामप्रकृति से वा । मिलने व बिछुड़नेसे, होले उत्पाद प्रौव्य विलय ॥ १२६ ॥ उत्पाद स्थितिभङ्गाः पुद्गलजीवात्मकस्य लोकस्य । परिणामाज्जायन्ते संधाताद्वा भेदात् ॥ १२६ ॥ क्रियाभाववत्वेन केवलभाववत्त्वेन च द्रव्यस्यास्ति विशेषः । तत्र भाववन्तो क्रियावन्ती च पुद्गलजीवी परिणामाभेदसंधाताभ्यां चोत्पद्यमानावतिष्ठमानभज्यमानत्वात् । शेषद्रव्याणि तु भाववन्त्येव परिणामादेवोत्पद्यमानावतिष्ठमान भज्यमानत्वादिति निश्चयः । तत्र परिणाममात्र लक्षणो भावः परिस्पन्दनलक्षणाक्रिया । तत्र सर्वाण्यपि द्रव्याणि परिणामस्वभाव t नामसंज्ञ --- उप्पादट्ठदिभंग मोग्गलजीवम्पग लोग परिणाम संघाद व भेद । धातुसंज्ञ –जा प्रादुर्भाव । प्रातिपदिक उत्पादस्थितिभङ्ग पुद्गलजीवात्मक लोक परिणाम संघात वा भेद । मूलधातु-जनी प्रादु र्भावे । उभयपदविवरण- उप्पादट्ठिदिभंगा उत्पादस्थितिभङ्गाः प्रथमा बहुवचन | पोग्गलजीवप्पगस्स पुगल जीवात्मकस्य लोगस्स लोकस्य षष्ठी एकवचन । परिणामादो परिणामात् संघादादी संघातात् भेदादो सब भाववान ही है क्रियावान नहीं । टोकार्थ - क्रियाभावपनेसे व केवल भाववानपनेसे द्रव्य के भेद होते हैं । उसमें पुद्गल तथा जीव भाव वाले तथा क्रिया वाले हैं, क्योंकि परिणाम द्वारा, तथा संघात और भेदके द्वारा वे उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं । परन्तु शेष द्रव्य भाव वाले ही हैं, क्योंकि वे परिणामके द्वारा ही उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं; ऐसा निश्चय है । उनमें भावका लक्षण परिणाममात्र है; और क्रियाका लक्षण परिस्पंद है । इनमें समस्त ही द्रव्य भाव वाले हैं, क्योंकि परिणामस्वभाव वाले होनेसे परिणामके द्वारा अन्वय और व्यतिकोंको प्राप्त होते हुये वे उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं । परन्तु पुद्गल भाव वाले तो हैं हो क्रिया वाले भी होते हैं, क्योंकि परिस्पंदस्वभाव वाले होनेसे परिस्पंदके द्वारा पृथक हुए, संघातके द्वारा एकत्रित होते हुए और एकत्रित पुद्गल पुनः पृथक् होते हुए उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं । तथा जीव भी भाववान तो हैं ही, क्रिया वाले भी होते हैं, क्योंकि परिस्पन्द स्वभाव वाले होनेसे परिस्पंदके द्वारा नवीन कर्म - नोकर्मरूप पुद्गलोंसे .. भिन्न जोव उनके साथ एकत्रित हुए कर्म- नोकर्मरूप पुद्गलोके साथ एकत्रित हुये जीव बादमें
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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