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________________ Ramnimim wesomenesdesk प्रवचनसार--सन्देशांगी टीका प्रय परमार्थादात्मनो द्रव्यकर्माकर्तृत्वमुद्योतयति..... परिणामो सयमादा सा पुण किरिय त्ति होदि जीवमया । किरिया कम्म त्ति मदा तम्हा कम्मरस यादकत्ता ॥१२२॥ परिणाम स्वयं प्रात्मा, परिणाम जीवमयो क्रिया ही है । क्रिया कर्म सो प्रात्मा, नहीं द्रध्यकर्मका कर्ता ॥ १२ ॥ परिणामः स्वयमात्मा' मा पुनः क्रियेति भयनि जीक्मयो । जिया कमें नि गता तम्मात्कर्मणो न तु का। प्रात्मपरिणामो हि तावत्स्वयमात्मन, परिणामिनः परिणामस्वरूपकर्तृत्वेन परिणामाइनन्यत्वात् । यश्च तस्य लथाविधः परिणामः सा जोमय्येव क्रिया, सर्वद्रव्यारा परिणामलक्षणक्रियाया प्रात्ममयत्वा नगमात् । या च क्रिया वा पुनरात्मना स्वतन्त्रणा प्राप्यत्वात्कर्म । ततस्तस्यः परमार्थादात्मा प्रात्मपरिणामात्मकस्य भावकर्मा एवं कर्ता, न तु पुद्गलपरिणामात्मका मामसंज्ञ-परिणाम सयं अन्त ता पुण किरिया त्ति जीवमया किरिया कम्म त्ति मदा त कम्म ण तु कालार । धातुसंज्ञ-हो सत्तायां, मन्न अवबोधने । प्रातिपदिक ....परिणाम स्वयं आत्मन् तत् पुनर क्रिया तात्पर्य----जीवके द्वारा जो किया जाय वह कर्म है, जीव के द्वारा भाव ही किया जाता है, अतः जीवका कर्म द्रव्य कर्म नहीं अर्थात द्रव्यकर्मका मार्ता जीन नहीं । टीकार्थ-निश्चयतः प्रात्माका परिणाम वास्तव में स्वयं प्रात्मा ही है, क्योंकि परिE पामी परिणामके स्वरूपका का होनेसे परिणामसे अनन्य है; और जो उस प्रात्माका तथा विष परिणाम है वह जीवामयी हो क्रिया है, क्योंकि सर्व द्रव्योंको परिणामलक्षणक्रियाके Eanie प्रात्ममयपना स्वीकार किया गया है । और फिर, जो जीवमयी क्रिया है वह प्रात्माके द्वारा स्वतंत्रतया प्राप्य होनेसे कर्म है । इस कारण परमार्थतः प्रात्मा अपने परिणामस्वरूप भावकर्म का ही कर्ता है; किन्तु पुद्गलपरिणामस्वरूप द्रव्यकर्मका नहीं । प्रश्न-तब फिर द्रव्यकर्मका कता कौन है ? उत्तर ----निश्च यतः पुद्गलका परिणाम वास्तवमें स्वयं पुद्गल ही है, क्योंकि परिणामी परिणामके स्वरूपका कर्ता होनेसे परिणामसे अनन्य है; और जो उस पुद्गलका तथाविध परिणाम है वह पुद्गलमयी ही क्रिया है, क्योंकि सर्व द्रव्योंको परिणामस्वरूप किया के निजमयपना स्वीकार किया गया है; और फिर, जो पुद्गलयी क्रिया है वह पुद्गलके द्वारा स्वतंत्रतया प्राप्य होनेसे कर्म है। इस कारण परमार्थतः पुद्गल अपने परिणामस्वरूप उस मध्यकर्मका ही कर्ता है, किन्तु प्रात्माके परिणामस्वरूप भाषकर्मका नहीं। इससे यह जानना WA चाहिये कि प्रात्मा प्रात्मस्वरूपसे परिणमता है, पुद्गलस्वरूपसे नहीं परिणामता है । प्रसङ्गविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि विकारभावके कारया द्रव्य Yaminitiini NamOKOY7CHAR POSSESASHEE म SAT
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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