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________________ २२४ सहजानन्दशास्त्रमालायां भावमायान्ति, कर्मस्वभावेन जीवस्वभावमभिभूय क्रियमाणत्वात् प्रदीपवत् । तथाहि पथा खलु ज्योतिःस्वभावेन तैलस्वभावमभिभूय क्रियमाणःप्रदीपो ज्योतिः कायें तथा कर्मस्वभावेन tataraafia क्रयमाणा मनुष्यादिपर्यायाः कर्मकार्यम् ॥ ११७ ॥ नैरयिकदा सुर । मूलधातु-अभिभू सत्तायां, डुकृञ करणे । उभयपद विवरण- - कम्मं कर्म णामसमक्खं नामसभास्त्र-प्रथम एकवचन | सहावं स्वभावं द्वि० एक० । अव अर्थ वा अन्य अपणो आत्मनः पृष्टी एक सहावेण स्वभावेन तृतीया एक० । अभिभूय असमतिको किया । परं नरं तिरियं तिचं गोरइयं किं सुर- द्वितीया एकवचन । कुदि करोति - वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया | निरुक्ति-त्र यत् कर्म नृणाति इति नरः तं लिया अंचातीति तिर्यक् सं सुरति इति सुरतं । समासस्वस्य भावः स्वभावः तं स्वभाव ॥ ११७ तात्पर्य - नामकर्मके उदयसे जीव नर नारकादि पर्यायोंरूप बन जाता है । टोकार्थ - क्रिया वास्तव में आत्म के द्वारा प्राप्य होने से कर्म है, उसके निमित्त से प्राप्त किया है द्रव्यकर्मरूप परिशामन जिसने ऐसा पुद्गल भी कर्म है । उस पुद्गलकर्मकी कार्यभूत मनुष्यादि मूलकाराभूत जीवकी क्रिया प्रवर्तमान होनेसे क्रियाफल ही हैं; क्योंकि क्रिया भावपुद्गलोंको कर्मत्वका प्रभाव होनेसे उस पुद्गल कर्मकी कार्यभूत मनुष्यादि: पर्याय का प्रभाव होता है । प्रश्न – वहां वे मनुष्यादि पर्यायें कर्मके कार्य कैसे हैं ? उत्तर-वे कर्मस्वभावके द्वारा जीवके स्वभावका पराभव करके की जाती हैं, दीपककी तरह । जैसे कि ज्योति स्वभावके द्वारा तेलके स्वभावको अभिभूत करके किया जाने वाला दोपक ज्योतिका कार्य है, उसी प्रकार कर्मस्वभाव के द्वारा जीवके स्वभावको अभिभूत करके की जाने वालो मनुष्यादि पर्यायें कर्मके कार्य हैं । - प्रसङ्गविवरण- ग्रनन्तरपूर्व गाथा में बताया गया था कि मनुष्यादि पर्यायें जीवका स्वरूप नहीं है और ये संसारफल देने वालो हैं । अब इस गाथा में स्पष्ट किया है कि अतु व्यादि पर्यायें जीवकी क्रियाके फल हैं । तथ्यप्रकाश - ( १ ) आत्माके द्वारा जो प्राप्य हो सो कर्म है, यह कर्म जोनको क्रिया है, भावपरिवति है । ( २ ) जोवके विकार क्रियाका निमित्त पाकर कार्माणवाद कर्मत्व. परिणमन होता है सो पुद्गल भी कर्म है । (३) कर्मके कार्यभूत मनुष्यादि पर्यायें हैं सो वे मूलकारणभूत जीवविभावक्रियासे प्रवृत्त हुए हैं अतः ये पर्यायें क्रियाफल हैं । ( ४ ) जीवकी विभावक्रियाका अभाव होनेपर कामणवर्गणावों में वत्वका प्रभाव हो जाता है । ( ५ ) पुद्गल कार्भाणवर्गणावों में कर्मत्वका प्रभाव होनेसे पुद्गलकर्मके कार्यभूत मनुष्यादि पर्यायें नहीं। होतीं । ( ६ ) जैसे ज्योतिस्वभावसे तेलस्वभावका श्रभिभव करके वार्ता के आधार से दीपशिखा
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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