SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रचचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका अर्धकद्रव्यस्यान्यत्वानन्यत्वविप्रतिषेधनोति दव्वणि सव्वं दव्वं त पज्जयडिएण पुणे | दम तकाले तम्मयत्तादो ॥ ११४ ॥ २१७ द्रव्य द्रव्यार्थनयसे, सब हैं अन्य अन्यान्य पर्ययो नयसे । क्योंकि उन उन विशेषों के क्षण में द्रव्य तन्मय है ॥ ११४ ॥ द्रव्यार्थिकेन सर्वं द्रव्यं तत्पर्यायार्थिकेन पुनः । भवति चान्यदनन्यत्तत्ला तन्मयत्वात् ॥ ११४ ॥ सर्वस्य हि वस्तुनः सामान्यविशेषात्मकत्वात्तत्स्वरूपमुपश्यतां यथाक्रमं सामान्य विशेष परिच्छिन्दतीद्वे किल चक्षुषी, द्रव्याथिक पर्यायार्थिक चेति । तत्र पर्यायार्थिकमेकान्तनिमीलित नामसंज्ञ - दव्वयि सब दब्व त पज्जयट्टिय गुणो न अभ्भ अणण तक्काल मत धातुसंज्ञ-हव सत्तायां । प्रातिपदिक द्रव्याधिक सर्व द्रव्य तत् पर्यायार्थिक व अन्य अनन्य तत्काल तन्मयत्व | सलधातु में सत्तायां । उभयपदविवरण- दव्वट्ठिएण द्रव्याधिकेन पज्जयद्विण पर्यायार्थिकेन-तृतीया एक । सव्वं सर्व दव्वं द्रव्यं तं तत् अन्यत् अनन्यत् प्रथमा एकवचन | हवदि भवति वर्तमान अन्य पुरुष 'वह सब जीव द्रव्य है' ऐसा भावित होता है । और जब द्रव्याथिक चक्षुको सर्वथा बंद करके मात्र खुली हुई पर्यायायिक चक्षुके द्वारा देखा जाता है तब जोवद्रव्यमें रहने वाले नारकत्व, तिर्यक्त्व, मनुष्यत्व, देवत्व और सिद्धत्व पर्याय स्वरूप अनेक विशेषों को देखने वाले और सामान्य को न देखने वाले जीवोंको वह जीवद्रव्य अन्य अन्य भासित होता है, क्योंकि द्रव्य उन-उन विशेषोंके समय तन्मय होने से उन उन विशेषोंसे अनन्य है-कंडे, घास, पत्ते और कामय की तरह । और जब उन द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों आंखों को एक ही साथ खोलकर इनसे अर्थात् द्रव्यार्थिक तथा पर्यायाधिक वक्षुयोंसे देखा जाता है तब नारक स्व तिर्यक्त्व, मनुष्यत्व, देवत्व और सिद्धत्व पर्यायोंमें रहने वाला जनसामान्य तथा जीवसामान्य में रहने वाले नारकत्व, तिर्यक्त्व, मनुष्यत्व, देवत्व और सिद्धत्व पर्यायस्वरूप विशेष एक ही साथ दिखाई देते हैं। वहाँ एक खिसे देखा जाना एकदेश प्रवलोकन है और दोनों खोंसे देखना संपूर्ण अवलोकन है । इस कारण सर्वावलोकनमें द्रव्य के अन्यत्व और अनन्यत्व विशेषको प्राप्त नहीं होते । प्रसंगविवरण - श्रनन्तरपूर्व गाथा में द्रव्यके प्रसदुत्पादको अन्यरूपसे निश्चित किया गया था । अब इस गाथामें एक ही द्रव्यके अन्यत्व व अनन्यत्वके विरोधका परिहार किया गया है ।। तथ्यप्रकाश - ( १ ) प्रत्येक पदार्थ सामान्यविशेषात्मक है । (२) पदार्थका सामान्य
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy