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________________ २१२ सहजानन्दशास्यमालायां त्ती पर्वाय निष्पादिकास्तास्ता गतिरेकम्यक्तयो योगपद्यप्रवृत्तिमासाधान्य यशक्तित्वमापन्नाः पर्या याच द्रवीकुयु:, यथाङ्गदादिपर्यायनिष्पादिकाभिस्वाभिस्ताभिगतिरेक व्यक्तिभियोगपद्यप्रवृत्तिमा साधावयशक्तित्व मापन्नाभिरङ्गदादिपीया अघि हे मीनिये रन् । द्रव्याभिधेयतायामपि सदुत्पत्ती नित्यादि का मन्त्रयशक्तयः क्रमप्रवृत्तिमासाद्य तसर्यात रेकव्यक्तित्वमापन्ना द्रव्यं पर्यायी कु: । यथा हेमनिष्पादिकाभिरन्वयशक्तिभिः क्रमप्रवृत्तिमासाद्य तत्तद्वयतिरेकमापन्नाभिहेमाङ्गदादिपएमात्री क्रियेत । ततो द्रव्यार्थादेशात्सदुत्पादः, पयपादिशादसत् इत्यनवद्यम् ।।१११॥ सम्भाणिवद्धं सदसद्भावनिबद्धं पानुभावं प्रादुर्भाव-द्वितीया एकवचन । लभदि लभते-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया। निरुक्ति.....प्रादुर्भवन प्रादुर्भावः । समास...व्यं अर्थः प्रयोजनं यस्य सः द्रव्या पर्यायः अर्थः प्रयोजनं यस्य सः पर्यायाः, द्रध्यार्थश्च पर्यायार्थश्च द्रव्याध यार्थी ताभ्यां द्र०, सच्च अगच्च सदसती तयोः भावः सदसद्धावः तेन निवद्ध सदसहायनिन ।। १११ ।। करता है । द्रव्यको अभिधेयताके समय भी सत्-उत्पाद द्रव्यको उत्पादक अन्वयशक्तियां कमप्रवृत्तिको प्राप्त करके उस उस व्यतिरेकव्यक्तित्वको प्राप्त होती हुई द्रव्यको पर्यायरूप करती है; जैसे कि सुवर्णकी उत्पादक अन्वयशक्तियाँ क्रमप्रवृत्ति प्राप्त करके उस उस व्यतिरेक व्यक्ति स्वको प्राप्त होती हुई सुवर्णको बाजूबंधादि पर्यायमात्ररूप करती है। इस कारण द्रव्यायिकनयके प्रदेशसे सत्का उत्पाद है, पर्यायायिकनयके सादेशले असत्का उत्पाद है, यह तथ्य बाध्य है। प्रसङ्गविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें गुणगुणीके दानापनको मिटाया गया था। अब इस काम द्रब्धपरिणामको सिद्धि के लिये द्रव्यके सदुत्सदमें व उसीके असदुत्पादमें अविरोध सिद्ध बारहे हैं। तथ्यप्रकाश--(१) द्रव्याथिक दृष्टिसे द्रव्यका सदुस्पाद है । (२) पर्यायाधिक दृष्टि से द्रव्यका असदुत्पाद है । (३) द्रव्यके ही निरूपणमें अन्वयशक्तियों द्वारा क्रमभावी व्यतिरेकव्यक्तियों ओझल होनेसे द्रव्यका सद्भावनिबद्ध हो प्रादुर्भाव अर्थात् विद्यमानका ही उत्पाद ज्ञात होता है। (४) पर्यायोंके ही निरूपणमें उत्पादविनाशविन बाली व्यतिरेकन्यक्तियों द्वारा आन्ध एशक्तियाँ ओझल हो जाने से द्रव्यका असद्भावनिबद्ध हो प्रादुर्भात्र अर्थात् अविद्यमानका ही उत्पाद ज्ञात होता है। (५) पर्यायाथिकप्रधानतामें असदुत्पाद ज्ञात होने पर भी वे व्यतिरेकव्यक्तियां द्रव्यरूप ही हैं । (६) द्रव्याथिकप्रधानतामें सदुत्पाद ज्ञात होनेपर भी जो द्रव्य है वह पर्यायरूपमें ही है ! (७) द्रव्याथिकदृष्टि से सदुत्पाद है । (८) पर्यायाधिकदृष्टिले असदुत्पाद है । सिद्धान्त-(१) सामान्य दृष्टि में कालिक उत्पाद व्ययोंका आधार वही एक सत् है। (२) विशेषति में असत्का उत्पाद है । माया
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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