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________________ Ammommmmmmmm . प्रवचनसार ....सप्तदशाङ्गी टीका यश्च नाशक्षणः स तत्पद्यावस्थाय च नश्यतो जन्मक्षण: स्थितिक्षणश्च न भवति । इत्युत्पादा. दीनी वितर्यमाणः क्षणभेदो हृदयभूमिमक्तरति । अवतरत्येवं यदि द्रव्यमात्मनेवोत्पद्यते प्रात्मनेवावतिष्ठते अात्मनैव नश्यतीत्यभ्युपगम्यते । तत्तु नाभ्युपगतम् । पर्यायाणामेवोत्पादादयः कुतः क्षणभेदः । तथाहि-यथा कुलालदण्डचक्र'चीवरारोप्यमाणसंस्कारसन्निधौ य एव वर्धमानस्य एक च एव समय तत् द्रव्य खलु तत्त्रितय । मूलधातु- सम् अब इण गती, संज्ञा अववोधने । उभयपदवि. वरण- रामबेदं समवेतं दत्वं व्यं तत्तिदयं तस्त्रितयं-प्रथमा एक खू खलू च एव अध्यय । सं' णाससपिणद? हि संभवस्थितिनाशसंज्ञितार्थ:-तृतीया बहु० । एक्वाम्हि एकस्मिन् समये-सप्लगी एक । स्थितिक्षण और नाशक्षण नहीं है, वस्तुका जो स्थितिक्षरण है वह वास्तव में दोनोंके अन्तराल में अर्थात् उत्पादक्षण और नाशक्षणके बीच दृढ़तया रहता है, इस कारण ध्रौव्य जन्मक्षण और नाशक्षण नहीं है; और जो नाशक्षण है वह, उत्पन्न होकर और स्थिर रहकर नष्ट हो रहे वस्तुका जन्मक्षण और स्थितिक्षगा नहीं है। इस प्रकार उत्पादादिकोंका तर्कपूर्वक विचार । किया जा रहा क्षणभेद हृदयभूमिमें अवतरित होता है ? उत्तर-~--उत्पादादिका क्षणभेद चित्त में भी उतरता है जब यह माना जाय कि 'द्रव्य स्वयं ही उत्पन्न होता है, स्वयं ही ध्रुव रहता है और स्वयं ही नाशको प्राप्त होता है । किन्तु ऐसा तो माना नहीं गया है। पर्यायोंके हो उत्पादादि हैं; फिर वहां क्षणभेद कहांसे हो सकता है ? स्पष्टीकरण - जैसे कुम्हार, दण्ड, चक्र और चीवरसे पारोपित किये जाने वाले संस्कारकी उपस्थितिमें जो कलशका जन्मक्षा होता है वही मृत्पिण्डका नाशक्षण होता है, और वही दोनों कोटियोंमें रहने वाला मृत्तिकात्व का स्थितिक्षण होता है; इसी प्रकार अन्तरंग और बहिरंग साधनोंसे आरोपित किये जाने वाले संस्कारोंको उपस्थितिमें, जो उत्तरपर्यायका जन्मक्षण होता है वही पूर्व पर्यायका नाशक्षण, होता है, और वही दोनों कोटियों में रहने वाले द्रव्यत्वका स्थितिक्षण होता है । और जैसे कलशमें, मृत्तिकापिण्डमें और मृत्तिकात्वमें उत्पाद, व्यय और धोव्य एक एकमें वर्तते हुये भी निस्वभावस्पर्शी मृत्तिकामें वे सम्पूर्णतया एक समय में हो देखे जाते हैं; इसी प्रकार उत्तर पर्यायमें, पूर्व पर्याय में और द्रव्यत्वमें उत्पाद, व्यय और धौल्य एक एकमें प्रवर्तमान होनेपर भी त्रिस्वभावस्पर्शी द्रव्यमें वे सम्पूर्णतया एक समय में ही देखे जाते हैं। और जैसे कलश, मृत्तिकापिण्ड तथा मृतिकात्वमें प्रवर्तमान उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य मिट्टी ही हैं, अन्य वस्तु नहीं; उसी प्रकार उत्तर पर्याय, पूर्व पर्याय और द्रव्यत्वमें प्रवर्तमान उत्पाद, व्यय और भोन्य । द्रव्य ही हैं, अन्य पदार्थ नहीं । प्रसंगविवरण-अनंतरपूर्व गाथामें उत्पाद प्रादिकोंको द्रव्यसे भिन्नताका निराकरण
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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