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________________ Sants METAILASSICALARY । B orgaonline । प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका अम कर्य जैनेन्द्र शब्दबहारिण किलार्थानां व्यवस्थितिरिति बितर्कयति दव्याणि गुणा तेसिं पजाया असण्ाया भणिया। तेसु गुणपज्जयाणं अप्पा दव्य ति उवदेसो ॥ ८७ ॥ द्रव्य गुरण तथा उनकी, पर्याय अर्थनामसे संजित : __ उन गुरए पर्यायोंकी आत्माको द्रव्य बतलाया ॥८॥ रव्याणि गुणास्तेषां पर्याया अर्थसंजया भणिताः । तेषु गुणपर्यायाणामात्मा द्रव्यमित्युपदेशः ।। ८७ ।। द्रव्याणि च गुणाश्च पर्यायाश्च अभिधेयभेदेऽप्यभिधानाभेदेन अर्थाः तत्र गुपपर्यायानियति गणपर्यापरयन्त इति वा अर्था द्रव्याणि, द्रवप्राण्याश्रयत्वेने यतिद्रव्यराश्रयभूतैरर्यन्त इति वा या गुणाः, द्रव्याणि क्रमपरिणामेनेयति द्रव्यः क्रमपरिणामेनार्यन्त इति वा अर्थाः पर्यायाः । नरमसंश-दव गुण त पज्जाथ असण्णय भणिय त गुणपज्जय अप्प दम्ब ति उबदेल । धातसंज्ञ... गती, परि इण् गतो, भण कथने। प्रातिपदिक-द्रव्य गुण तत् पर्याय अर्थसंज्ञा भणित तत् गुणपर्याय भारमन् द्रव्य इति उपदेश । उभयपदविवरण--. दव्याणि द्रव्याणि गुणा गुणाः पज्जाया पर्याया:--प्रथमा मनुवचन । असण्णया अर्थसंज्ञया-तृ० एन० ! भणिया भगिता:-प्रथमा बहु० वृदन्त क्रिया । सेसु तेषु प्रयोग----निर्मोह आत्मतत्त्वको उपलब्धिके लिये अपनेपर उपदेशको घटित करते हुए मानका अध्ययन करना ।। ६६ ।। अब जिनागम में वस्तुत: अर्थोकी व्यवस्था किस प्रकार है, यह सतर्क विचार करते है. प्रिव्यागि] द्रव्य [गुणाः] गुण [तेषां पर्यायाः] और उनकी पर्याय [अर्थसंजया] 'प्रार्थ' मामसे [भरिणताः] कही गई हैं ! [तेषु] उनमें [गुरणपर्यायानाम् प्रात्मा द्रव्यम्] गुण-पर्यायों का पारमा द्रव्य है [इति उपदेशः] इस प्रकार जिनागममें उपदेश है ।। तात्पर्य-द्रव्य, गुण व पर्याय ये अर्थ नामसे कहे जाते हैं, उनमें द्रव्य गुण पर्यायमय . टोकार्थ--द्रव्य, गुण और पर्याय अभिधेयभेद होनेपर भी अभियानका अभेद होनेसे में अर्थ हैं। उनमें जो गुरणोंको और पर्यायोंको प्राप्त करते हैं अथवा जो गुणों और पर्यायोंके हात प्राप्त किये जाते हैं, ऐसे वे 'अर्थ' द्रव्य हैं, जो द्रव्योंको आश्रयके रूपसे प्राप्त करते हैं भपया जो आश्रयभूत द्रव्योंके द्वारा प्राप्त किये जाते हैं, ऐसे वे 'अर्थ' गुण हैं, जो द्रव्योंको कमपरिणामसे प्राप्त करते हैं अथवा जो द्रव्योंके द्वारा कमपरिणामसे प्राप्त किये जाते हैं ऐसे वे 'अर्थ पर्याय हैं । बास्तवमें जैसे सुवर्ण, पीलापन इत्यादि गुणोंको और कुण्डल इत्यादि मायोको प्राप्त करता है अथवा सुवर्ण उनके द्वारा प्राप्त किया जाता है, इसमें वह सुवर्ण
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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