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________________ TwitSASSARAI प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका अर्थवमबधारितशुभाशुभोपयोगाविशेषः समस्तमपि रागद्वेषद्वतमपहासयन्नशेषदुःख. क्षयाय सुनिश्चितमनाः शुद्धोपयोगमधिवसति-... एवं विदिदत्थो जो दव्वेसु गा रागमेदि दोमं वा । उपभोगविसुद्धो सो खवेदि हेहुम्भवं दुक्खं ॥७॥ यो सत्य जानकर जो, द्रव्योंमें राग द्वष नहि करता । शुद्धोपयुक्त हो वह, देहोद्भव दुख मिटाता है ।। ७८ ॥ एवं विदिताओं चो द्रव्येषु न रागति द्वेष वा। उपयोगविद: सक्षपति दहोशय दुःखमा ।। ७८ ॥ यो हि नाम शुभानामशुभाना व भावानामविशेषदर्शनेन सम्यकपरिच्छिन्नबस्तुस्वरूपः स्वपर विभागावस्थितेषु समग्रेषु ससम अपर्यायेषु द्रन्येषु राम दुषं चाशेष भेव परिवर्जयति स किले नामसंज्ञ..एवं विदिदस्थ ज दव्व ण राग दोस वा उवओविसुद्ध त देहुभव दुनन् । धालुसंज्ञइगती, खव क्षण बारणे तृतीयगणी, विद ज्ञाने । प्रातिपदिक....एवं विदितार्थ यत् द्रव्य न राग द्वेष वा उपयोगविशुद्ध सत् दही व दु.ख । मूलधातु----विदल ज्ञाने, इण् गती, क्ष क्षये पुकानिदेशात क्षपि क्षये भ्वादि । उभयपदविवरण ---- एवं ण न वा-अध्यय । विदिदत्थो विदितार्थ: जो यः उयोगविसुद्धो उपयोगचारकव्यवहार (१०८)। प्रयोग----पुण्य पाप दोनोंको विकार जानकर उनमे उपेक्षा करके पण्यपापरहित सहज चैतन्यस्वभावमें उपयुक्त होना ॥२७।। अब इस प्रकार अवधारित किया है शुभ और अशुभ उपयोगकी अविशेषता जिसने, ऐसा समस्त रागद्वेषक हुँतको दूर करता हुया अशेष दुःखका भय करने का मनमें दृढ़ निश्चय करने वाला ज्ञानी पुरुष शुद्धोपयोगमें निवास करता है...... [एवं] इस प्रकार [विदितार्थः] जान लिया है वस्तुस्वरूपको जिसने ऐसा [यः] जो ज्ञानी [द्रव्येषु] द्रव्योंमें [राग द्वेषं वा राग व द्वेषको [न एतिः] प्राप्त नहीं होता [सः] वह [उपयोगविशुद्धः] उपयोगविशुद्ध होता हुप्रा [देहोद्भवं दुःखं] देहोत्पन्न दुःखका [क्षपयति] क्षय करता है । तात्पयं-- वस्तुस्त्र रूपको जानकर जो ज्ञानी पदार्थों में राग द्वेष नहीं करता बह दुखों का विनाश करता है। टीकार्थ...-जो जीव शुभ और अशुभ भावोंकी समानताकी श्रद्धासे वस्तुस्वरूपको - सम्यकप्रकार से जानता है, स्व और पर - ऐसे दो विभागोंमें रहने वाली समस्त पर्यायोसहित समस्त द्रव्यों में राग और ष सारा हो छोड़ता है वह जीव एकान्त उपयोगविशुद्धपना होने से छोड़ दिया है परद्रध्यका मालम्बन जिसने, ऐसा वर्तता हुआ लोहके गोलेमें से लोहेके सार BHUSHREE
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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