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________________ सहजानन्दशास्त्रमालायां CriminexmarAyawwwINARImaticipanilewlativummimmemaine लम्मा । सोहि केवलावस्थायां सुख प्रतिपत्तिविपक्ष भूता दुःखस्य मानिनामुमतमजानमखिलगद प्रणयात, मुखय साबनीभूतं तु परिपूर्ण ज्ञान मुपजायत । ततः कवलमब समयनित्यलं प्रान् ॥६१! ग-44 14 ला लोकालोका० अह । विस्थामा विनिता दिली ....He वा | लग- प्रकाश लिया । पुनर पुनः ?--अव्यय । निरुक्ति ... | इट अनिष्ट, लारा गाषि Affiमरान । समास अयय अन्तः अर्थानःन्निं गनः अगाः ।। १।। రాజు Imanensisonmentapmurgicancyemkanswermmsmicpmmmmmunities कारण प्रतान्तिय अधिकार सहज चैतन्यस्वरूपमें अात्मत्वका अनुभव करना i६०।। आधार भो 'केवलजान सुख स्वरूप है। यह निरूपण करते हुय उपाहार करना है.--- [शान] ज्ञान अन्तिगत] पदार्थोक पारको प्राप्त है । दृष्टिः] और दर्शन लोकालोक वि. स्तृताः लोकालोक में विस्तृत है; [सर्व अनिष्ट] सर्व अनिष्ट [नष्टं] नष्ट हो चुका है. पुनः] और [यत् तु जो इदं] इष्ट है [तत् ] वह मुख [लब्ध] प्राप्त हुप्रा है। तात्पर्य ---- केवल ज्ञान के होनेपर सर्व अनिष्ट मिट चुका व पुर्ण ३ मिल गया, इस कार भी केवलज्ञान परिपूर्ण प्रानन्दमय है । टोकार्थ-स्वभवाप्रतिधात के अभाव के कारण ही परमार्थ सुख है ! आत्मावा स्वभाव दर्शन शान है; उन दोनों के लोकालोक में विस्तृसपना होने से और पदार्थोक पारको प्राप्त होतो व स्वतन्त्रता विकसितपना होने से प्रतिघातका अभाव है। इस कारण स्वभाव प्रतिधाता का अभाव जिसका कारसा है ऐसा भूख अभेदविवक्षामें केवल जानका स्वरूप है। और अया, कि केवलज्ञान गुख हो हैं, क्योंकि सर्व अनिष्टों का नाश हो चुका है और सम्पूर्ण दृष्ट की प्राप्ति हो चुकी हैं। चूंकि केवल अवस्थामें, मुखोपलब्धिक विपक्षभूत दुःखके सावनपनाको प्राप्त समस्त ही अजान नष्ट हो जाता है और सुखका साधनीभूत परिपूर्ण ज्ञान उत्पन्न होता है, इसबारा केवल ही मत है । यह अधिक विस्तारसे बस होयो । प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्ण गाथामें बताया गया था कि केवलज्ञान परिणामल है सो बहाँ खद संभव होगा, अतः अानन्दका अभाव होगा, एसी शंका नहीं रखनी चाहिये । यस इस गाथामें पुनरपि वेधलमानको ग्रानन्दस्वरूपताका निरूपण किया गया है । तथ्यप्रकाश-(१) प्रानन्द तो स्वभावका प्रतिघात न होनेके कारण सुया करता है। (२) प्रामाका स्वभाव दर्शन ज्ञान है । (३) प्रभुका दर्शन ज्ञान असीम विकसित है वहां स्वभावका प्रतिधान नहीं है । (४) जहां स्वभावका प्रतिघात नहीं है वहां अनंत आनंद है और वही अभेदविवक्षामें केवलज्ञानका स्वरूप है । (५) केवलज्ञान होनेपर कोई आनिष्ट नहीं रहा Ganapyaar ictarteentheEANING ముందు కు కు కు కు కు కు కు మందు
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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