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प्रवचन
सागेद्वारे
सटीके
द्वितीय:
झण्ड
॥६९४॥
दिपो यथा निर्वृतिः सौम्बरनन्यकाव्यसगं १६६२८ | द्रवमूर्तिस्पर्शयो: १५६३ (पा ६-१-२४) दीति य के इहं १११४७ दीहो बाहल्लपुहु० १५५२
धर्मध्याननिबद्धबुद्धि ११३९ धर्मसाधननिमित्तयुक्त० ११३८७ uttara मरियवं २२४४ ध्यानावेश विलोकिता० ११३८
दुवालसमं वरिस २३१५० निशीथ चूरिशः मा० गा० ३८१४ दुविह तिविहाय छत्रिय २५०५ भावकव्रतभङ्गप्रकरण
न करेमि मरणसाSSहार० २१७५ नकरेंति मखसाहार० २७७
न कालव्यतिरेकेण २३३७ शास्त्रवार्ता समु० १६५
गा० ६
दुविहति विण पमो २२५०१ प्रावश्यक नि० १४४८ विवि पंचम २५०८ दुविहे गेली २७४
ब० क० मा० १५५०, नि० भा० २५३२
देवाण नारयाण व २.२९९ ओवसमास गा० ७४
सेवा देवीं नरा नारी १२३७
देवेज्यात्मजबान्धव० २५६०
देसकुलजाई १३७
हम्म प्रसंलिहिए ११६२७०० १५७७ सो पसइ ११३४१
वोह सहस्तमा २७०
बोसासह मज्झिमा १५४६ ० क० भा० ६४३५ रोहिदि नएहि २८१ विशेषाव २१३४
सम्मत्तिक प्र० lirt
नऽणुमन्ने मणसाहार २७५ न मारयामीति कृतः १।१६१ न य तंपि इह पमार्ण १।१४८ नव नव य होंति कमसो २०५०१ नवरं इह परिभोगो १।१४७ नवि किचि प्रणुन्नायं १३८४
न सम्स्यनपत्यस्य २.१६४ न सम्ममिच्छो कुणइ कालं २/४८१ न सरह पमायजुत्तो ११२१०
भावक प्रज्ञप्ति ३१६ सधोध प्र० भा० ११०
महतचमरवासा १।१६६
न तहस तन्निमितो १४५४ प्रोपनियुक्तिः ७४८
परिशिष्टं ३
उद्धरण
सूचिः
।।६९४|