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________________ ३ परिशिष्टे दु-ति-चउअंगुलमाणं नीर जद्द हवइ सिद्धभत्तुवरि । प्रायंबिलं विसुद्ध हविज्ज तो सम्वकद्वहरं ॥११२॥ प्रवचन । जगराजारपण जगरा-जोरयजुत्तं प्रोयमिह कप्पए जईण पुणो | साणं नो कप्पह तरिलट्टाइयं वि पुणो ॥११॥ सारोद्धारे निविगयं पुण तिविहं इम-बीयासणेगठाग-दत्तितवे। वग्वारियतिमण-खज्जग विगइगयं नोऽवभुजेई ॥१४॥ 'जत्थ अलेव भुजइ खाइमववि नोऽवभुजेइ । उक्किट्ठ निखिगई मज्झिमनो खाइमं भुजे ॥११॥ सटीके तत्थ जहन्ने सवं विगइगयं भुजए अकारण नो । संपइ इगासम्मि य किज्जइ निविवगयपच्चक्खाणं ॥११६॥ सोवीरमुसिणनोरं पकप्पए तिविनिदिवगम्मि । पाय सचितचायो कि बहुदिणत भयणा ॥१७॥ १८४ रइयं पगरमेयं मुणोण माहारभेयनाणटुं । सिरिसिरिचंदमुणिदेण हेमसूरीण सोसेण ११। लघुः प्रवचनसारोद्धारः गाधा ॥ इति श्रीलघुप्रवचनसारोद्धारः समाप्तः ॥ . ११८ १ अस्थ-मु.॥२ गइयंमि- माहारमेय मु.॥ ॥६८४॥
SR No.090383
Book TitlePravachansaroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages740
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size24 MB
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