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५-१००८ श्री सुमतिनाथ जी सुमति सुमति दातार हो. हरता कुमति प्रज्ञान । मोह तिमिर के नाश को, पुनि पुनि कर प्रणाम ।।
तीर्थर प्रकृति बंध कैसे हुमा....
पूर्व विदेह । पुष्कलावती देश । सीता नदी का उत्तर तट । पुण्डरीकिनी नगरी । रतिषण राजा। साथ था उसके पूर्वोपाजित तीन प्रभूत पूण्य । विशाल राज्य मिला, वह भी उत्तरोतर बढ़ता गया । बिना क्रोध किए समस्त राजा वश में हो गये । क्यों युद्ध करता फिर? वह व्यसनों से रहित और राज्यनीति से सम्पन्न था। उसकी राज्य विद्या उसी में थी। आन्वीक्षि, त्रयी, वार्ता और दण्ड चारों विद्याएँ उसके पास थीं, किन्तु तो भी दण्ड नीति का उसने कभी भी प्रयोग नहीं किया। उसने अर्जन, रक्षण, वर्द्धन और व्यय कारों उपायों से धन कमाया था । अरहत देव ही देव हैं, इस अटल श्रद्धान से धर्म का सेवन