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४-१००८ श्री अभिनन्दन नाथ जी सत्य तत्त्व प्रतिपादन से अविरोधी दिव्य-ध्वनि जिनकी । सुनकर जन प्रानन्दित होते, स्थावाद बाणी उनकी ॥१॥ नमन करू शत्-शत् चरणों में, हरै कलुष मेरे मन का । लिखकर जीवन चरित्र उन्हीं का, काद सा फेरा भवका २
गर्भावतरण से पूर्व भव.. - "विगतः देहः विदेहः” जहाँ से शरीर का सर्वथा नाश कर सतत् भव्य जन मुक्ति प्राप्त करते रहते हैं वह विदेह क्षेत्र है। पूर्व विदेह में सीता नदी प्रवाहित होती है । इसके उत्तर में ८ नगरिया हैं और न ही दक्षिण भाम पर स्थित हैं। उनमें से एक मंगलावती देश में रलसंचय नगर था। इसका पालक राजा 'महाबल' था। राजा षड्गुणों से सम्पन्न सानन्द राज्य करता था। सरस्वती, कीति और लक्ष्मी यद्यपि सपत्नी के सदृश हैं किन्तु उस राजा के तीनों प्रेम से निवास करती थीं।