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३-१००८ श्री संभवनाथ जी
पूर्वमन
संसार अनादि है अनन्त काल तक चलेगा । परन्तु ज्ञानी का संसार अनादि शान्त है। उसकी दृष्टि ही उसके दुःखों का प्रभाव करती है । जानी ही शान का स्वाद जाने । जिस समय उसके अनुभव में सारासार का भेद आता है, उसी क्षण वह 'सार' भूत तत्त्व के अन्वेषण में लग जाता है । पूर्व विदेह के कच्छ देश की नगरी क्षेमपुर का महाराजा विमल वाहन संसार, गरीर, भोगों से विरक्त हो विचारने लगा, “प्रहों मोह का माहात्म्य यह जीव मृत्यु की तीक्ष्ण दादों के बीच रहकर भी जीवन इच्छा की डोरी से बंधा रहना चाहता है, प्रशारण भूत आयु कों ही भारत रूप समझता है और आशा रूपी तीन ताप से संतप्त हो विषय भोग नदी के जीर्ण-शीर्ण पुराने तटों पर खड़े नाशोन्मुख वृक्षों की छाया चाहता है।" कितना घोर अंधाकार है यह । क्या इस विश्व में कुछ अभय रूप है ? कोई साश्वत शरण हैं ? हाँ है, वैराग्य मात्र
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