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________________ इसलिए ४ हजार छोटे राजा बनाये । सोमप्रभ कुरुवंशाधिपति, हरि, हरिवंश का प्रवर्तक, ग्रकम्पन नाथवंश नायक एवं काश्यम उम्रवंश का नेता घोषित किया। इसी प्रकार अपने पुत्रों को भी यथायोग्य छोटे-बड़े राज प्रदान किये 1 इक्ष्वाकु वंश--- १४ भगवान ने प्रजा को इक्षुरस निकालने का उपदेश दिया इसलिए इनका वंश इक्ष्वाकु वंश कहलाया । "इक्षून्" प्राकथयतीति “इक्ष्वाकु : ' अर्थात जो ई-ईस लाने का उपदेश दे उसे "दक्ष्वाकुः " कहते हैं । प्रस्तु प्रभु का वंश इक्ष्वाकु हुआ । राज्यकाल भगवान का सम्पूर्ण शासन काल ६३ लाख पूर्व वर्षों तक रहा । अगाध और असीम पुण्योदय से प्राप्त नाना विभूतियों, सन्ततियों के मध्य से गुजरता काल क्षणमात्र के समान व्यतीत हो गया । प्रभु भोगों की तराई में अपनी तराई को भूल से गये। सुखोपभोग का नशा ऐसा ही विचित्र है । जो महापुरुषों को भी वर्गला देता है । भगवान को वैराग्य का निमित्त पञ्चेन्द्रिय विषय न मिलने पर जितना कष्ट देते हैं उससे भी अधिक मिलने के बाद दुःखदायी हो जाते हैं । इनके प्रभाव से अनुरंजित बुद्धि परमार्थ की ओर से विमुख हो जाती है। वृषभ स्वामी का भी यही हाल था । मेरा राज्यभोग में कितना समय पार हो गया और शेष आयु कितनी रह गयी है, इसमें मुझे क्या करना है ? यह सब भूल से गये । परोपकारी धर्म बन्धु इन्द्र को चिन्ता हुयी । “म्याऊँ ( बिल्ली ) का मुंह कौन पकड़े" वाली दशा थी। किन्तु "बुद्धिर्यास्यवलं तस्य " । इन्द्र ने प्रभु को संसार, भोगों से विरक्त करने की युक्ति सोच निकाली । वह सपरिवार अप्सरानों को लेकर सभा में उपस्थित हुआ। अल्पायु बाली "नीलांजना" का नृत्य प्रारम्भ कराया। कुछ ही क्षणों में सारी सभा विभोर हो सुग्ध हो गई । उसी समय वह अप्सरा भी मरण को प्राप्त हो - विलीन हो गई । इन्द्र ने तत्क्षस उसके अनुरूप अन्य नीलांजना निर्मित कर दी। इस परिवर्तन को कोई भी दर्शक समझ न सका परन्तु ३२ ]
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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