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व्यवहार और यथार्थ पाण्डित्य को चर्चा से सर्वत्र सन-सनी मच गई। हल-चल हो गई। क्षणिक वाद, कूटस्थ नित्य वाद, शून्यवाद, सांख्य सिद्धान्त इत्यादि धर्म की ओट में स्वार्थ गांठते और भोले जीवों को आत्म स्वरूप से सर्वथा भिन्न एकान्त, भ्रान्त, मिथ्यापथ पर ले जाते । चारों और अज्ञान, प्रविद्या, मोह का तिमिर वाया था । भगवान महावीर का जन्म इस तिमिर के नाशार्थ ही हना। अस्तु बालोदय रवि के समान इनकी प्रताप किरणें व्याप्त होने लगी । स्वयं देव, देवियाँ देवेन्द्र इनकी परिचर्या में करबद्ध रहते। इनकी प्रायु ७२ वर्ष और शरीर जन्म समय १ हाथ मात्र था ।
एक दिन सीधमेन्द्र सभा में कहने लगा । " इस समय वर्द्धमान कुमार के समान शूर-वीर, पराक्रमी अन्य कोई नहीं है ।" उसी समय वहाँ से संगम नाम का देव परीक्षार्थ पाया। उस समय बालक वर्द्धमान इष्ट मित्रों के साथ वक्ष पर.चढ़े क्रीडारत थे । वह देव भयंकर विषधर (भजंग) का रूप धारण कर वक्ष के स्कंत्र में चारों ओर लिपट गया। भयंकर फंकार मारने लगा। सभी बच्चे पेड़ से कुद-कूद कर भाम गये । वर्तमान को भय कहों, ये मुस्कुराते उसके विशाल फसा पर खड़े हो गये, उसके ऊपर उछल-कूद कर उसी के साथ खेलने लगे। देव उनका साहस देख प्रकट हुप्रा । खूब स्तुति की और उनका "महावीर" नाम रखा।
वे बचपन से ही परम दयालु थे। दीन, अनाथ, विधवा, असहायों का जबतक कष्ट निवारण नहीं करते इन्हें चैन नहीं पड़ता। उनके हृदय में अगाध प्रेम का सागर उमड़ता था। वर्द्धमान जन-जन का और जनजन वर्द्धमान का बा । भारत का कोना-कोना, नदी, नद. पर्वत चोटियाँ. लता, गुल्म, वन कहीं भी जाओ, नर, नारियाँ, सुर, असुर, किन्नरों के मिथुन इन्हीं का यशोगान करते मिलते।
. श्री पाश्वनाथ भगवान के मुक्त होने के बाद २५० वर्ष व्यतीत होने पर पापका प्राविर्भाव हया। इनकी आयु इसी में गभित है। इनका शरीर ७ हाथ था । रंग सुवर्ण के समान कान्तिमान था।
एक बार संजय और विजय नाम के दो चारण मुनियों को तत्व सम्बन्धी कुछ संदेह हो गया । थे भगवान महाकोर के पास आये, उनके
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