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________________ Swi सकता ।" अरे, tr ए कल के छोकरे क्या कहता है ? कहाँ हिंसा है ? मुझे पापी कहते शर्म नहीं प्राती ।" झल्लाते हुए तापसी बोला । सुभम ने कुतप की निन्दा कर उसे और भड़काया । प्रभु कुमार ने शान्त भाव से लक्कड़ में जलते नाग-नागिन के जोड़े को निकलवाया, उन्हें करूणाभाव से पत्र नमस्कार मन्त्र भी सुनाया जिसके प्रभाव से वे दोनों शान्तचित्त से मर कर बररणेन्द्र और पद्मावती हुए । तापस को समझाने पर भी उसने अपना हठ नहीं छोड़ा । प्रार्तध्यान से मर कर संवर नाम का ज्योतिषी देव हुआ । अयोध्यापति जयसेन ने एक समय इन्हे उत्तमोत्तम उपहार भट में भेजे । उपहार स्वीकार कर दूत से प्रयोध्या नगरी का महत्व पूछा । श्री वृषभ तीर्थकर आदि की गौरव गाथा सुनते ही उन्हें जाति स्मरा हो गया । प्रबुद्ध हुए । विचारने लगे प्रोह, मैं भी तो तीर्थङ्कर हूँ । पर मैंने यूं ही ३० वर्ष गमा दिये । पाया क्या ? अब शीघ्र श्रात्म स्वरूप प्राप्त करूंगा । विरक्त होते ही सारस्वतादि लोकान्तिक देव आये और उनके विचारों की पुष्टी कर चले गये । राजा विश्वसेन आदि ने बहुत समझाया, विवाह एवं राज्य करने का प्राग्रह किया । परन्तु क्या कोई बुद्धिमान प्रज्वलित अग्नि देखते हुए उसका स्पर्श करेगा ? कभी नहीं । उसी समय इन्द्र आ गया । दीक्षा कल्याणक - इन्द्र ने असंख्य देव देवियों के साथ प्रभु का दीक्षाभिषेक किया । नाना अलंकारों से सजाया, उत्तमोत्तम वस्त्र पहनाये । "विमला" नाम की दिव्य पालकी लाए। प्रभुजी अनेकों राजकुमारियों के श्राज्ञा बन्धन तोड़ शिविका में सवार हुए। 'अश्व' नामक वन में पहुँचे। तेला का नियम कर सिद्ध साक्षी में जिनल धारण किया । इनके साथ ३०० राजा दीक्षित हुए । इन्द्र ने भी दीक्षा कल्याणक महोत्सव मना, अनेक प्रकार मुनि तीर्थङ्कर की पूजा कर अपने स्वर्गलोक में गये । उनकी आत्म विशुद्धि के प्रसार से दीक्षा लेते ही उन्हें मनः पर्यय ज्ञान उत्पन्न हो गया । चाहार- प्रथम पारणा तीन उपवासों के बाद चौथे दिन वे विरक्त तपोधन, महामौनी आहार के लिए निकले। वहाँ धन्य नामक राजा ने विधिवत् पउगाहन [ २४५ wwwwwww
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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