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________________ NRN पर स्फूर्ति बढ़ गई । सुख से गर्भ वृद्धि हुथी। बालक सीप में मुक्ता की भांति बढ़ा । अन्त में मार्गशीर्ष (अगहन) सुदी एकादशी के दिन अश्वनी नक्षत्र में शरद-पूर्णिमा के समान ज्योतिर्मान, सर्वाङ्ग लक्षण सम्पथ, अद्भुत बालक को जन्म दिया । उसी समय शंखनाद आदि चिह्नों से तीर्थर का जन्म ज्ञात कर देवगणों से परियुत इन्द्र राजा ऐरावत हाथी सजाकर पा गया । नगरी की तीन प्रदक्षिणाएँ दी । शची प्रसूतिगृह में जाकर सद्योजात बालक को ले प्रायों । मां को कष्ट न हो इसके लिए जिन बालक का प्रतिविम्ब रख पायीं। इन्द्र देखते ही होशहवाश भूल गया । एक हजार नेत्र बनाकर भी निराश ही रहा, उनके रूप देखने में । तत्काल सुमेरु पर्वत पाये। अन्माभिषेक पापडक शिला पर पूर्वाभिमुख विराजमान कर क्षीर-सागर के जल से भरे १००८ कलशों से जिन बालक का मस्तकाभिषेक किया । सबों ने अभिषेक कर अपनी-अपनी भक्ति के अनुसार पाप पंक प्रक्षालित की। इन्द्राणी ने देवियों सहित भगवान बालक को शृगारित किया, इन्द्र ने महिलानाथ नाम घोषित किया । नृत्यादि कर परमानन्द से पुन: मिथिला नगरी में आये । माता-पिता की गोद में स्थापित किया। कुम्भ-कलस चिह्न निर्धारित किया । इन्द्र ने स्वयं प्रानन्द नाटक किया और सफ. रिवार अपने-अपने धाम को लौट गये । देव-देवियों के हाथों हाथ में उछलते-कूदते, खेलते बाल प्रभु बढ़ने लगे। अपने कोतूहलों से सबका मन हरते थे। बाल रूपधारी देवी-देव ही उनके प्राहार-विहार, हास-विलास के साथी थे, व्यवस्थापक थे। अरनाथ तीर्थङ्कर के बाद एक हजार करोड़ वर्ष बीतने पर पुण्यशाली मल्लिनाथ भगवान हुए थे । इनकी प्रायु भी इसी में शामिल है । इनकी प्रायु ५५००० वर्ष की थी। शरीर २५ धनुष ऊँचा था। शरीर कान्ति सुवर्ण सदृश थी । कुमार काल-बैराग्य माव प्रामोद-प्रमोद में १०० वर्ष पूर्ण हो गये । पिता ने बड़े ही उत्साह से कुमार का विवाह रचाने का विचार किया। अनेकों सुन्दर कन्यामों [ २१३
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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