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________________ gar करानी पड़ती है । उसी प्रकार अधिक भोगानुभव करने से विरक्ति होना स्वाभाविक है। सत्पुरुषों की दृष्टि निमित्त पाकर शीघ्र परिवर्तित हो जाती है । 1 1 शरद कालीन मेघमाला जितनी सुहानी होती है, उतनी ही चंचल भी । एक दिन सुरम्य मेघ पटल को नष्ट होते देखकर उन्हें वैराग्य हो गया। जिस प्रकार भूकम्प से समस्त वस्तुएँ अस्थिर हो जाती हैं उसी प्रकार सारा संसार उनकी दृष्टि में असार प्रतीत होने लगा । उसी समय ताक लगाये बैठे लौकान्तिक देव गरण आये और स्तुति कर प्रबल वैराग्य भावना का समर्थन कर अपने स्थान को प्रस्थान किया । पुनः समस्त देव, देवेन्द्र देवांगना- इन्द्राणियाँ आये । सबने मिलकर उनका दीक्षाभिषेक किया । वैराग्य बढ़ाने वाले उत्सव किये | अरहनाथ स्वामी ने अपनी राज सम्पदा अपने अरविन्द कुमार को अर्पण की । पुत्र का राज्याभिषेक होने पर वे विरक्त महामना देवों द्वारा लायो 'वैजयन्ती' नाम की पालकी में सवार हो सहेतुक वन में पहुँचे । इन्द्र से पूर्व स्थापित मणि-शिला पर रत्न चूर्ण मण्डित स्वस्तिक विराज कर सिद्धपरमेष्ठी साक्षी पूर्वक जिन दीक्षा स्वीकार की। मंगसिर शुक्ला दशमी के दिन रेवती नक्षत्र में शाम के समय बेला का नियम कर १००० राजाओं के साथ परम दिगम्बर मुद्रा वारण की । केश लौंच कर फेंके केशों को इन्द्र ने उठाकर रत्नपिटारी में रख ले जाकर क्षीर सागर में frefer किया । भगवान को प्रव्रज्या धारण करते हो मनः पर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया । इन्होंने ३६० धनुष ऊँचे प्राम्रवृक्ष के नीचे दीक्षा ग्रहण की थी । प्रखण्ड मौन धारण कर प्रभु मुनिराज घोर साधना रत हुए । पारणा - प्रथम ग्राहार बेला के दो उपवास पूर्ण कर महामुनिवर चर्या मार्ग से प्रहार के लिए निकले । नातिमन्द गति से चऋपुर नगर में प्रविष्ट हुए । सुवर्ण सम कान्तियुत महाराज अपराजित ने उन्हें नवधा भक्ति से पवित्र, शुद्ध क्षीराम का पारणा करा कर farse पुण्य प्रकाशक पवारचयं प्राप्त किये | भगवान मुनि आहार ले पुनः बेला, तेला, भ्रष्ट, पक्षोपवास, मासोपवास श्रादि नाना प्रकार तपश्चरण करने लगे । [ २०७
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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