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________________ 0000000 HRAMMARAMARRIARAMATARARIAnsatsaniyatusRYAmeanMAHATHIHOTMINIMINAMAMMAHITIONA M E कलशों से जम्माभिषेक किया । पुन: समस्त देव-देवियों ने भी किया। गंधोदक लगाया । इन्द्राणी ने गंध लेपन किया । प्रारती उतारी। सुगंधित द्रव्यों से अभिषेक कर कोमल वस्त्र से शरीर पोंछा । कान वर्ग भगवान, स्फटिक मरिण का सिंहासन भी सुवर्ण करणं दीखने लगा। शचि देवी ने नाना प्रकार रत्न जड़ित प्राभुषण पहिनाये, वस्त्र धारण कराये । नत्य गीतादि सहित वापिस पाकर माता-पिता की गोद में बालक को देकर "आनन्द" नाटक किया । नाम 'शान्तिनाथ' घोषित किया । हिरण का बिल भी निर्धारित किया । हाथ के अंगूठे में अमृत स्थापित किया । देवों को बालक बन प्रभु के साथ क्रीडा करने का आदेश दे अपने स्थान पर गया। द्वितीया के मयंक बत् अद्भुत बाल भी बद्धता हा विहंसने लगा। भगवान धर्मनाथ के बाद पौन पल्य कम तीन सागर बीत जाने पर आप हुए। इनकी प्रायु भी इसी में सम्मिलित है । इनकी आयु १ लाख वर्ष थी। शरीर उत्सेध ४० धनूष, कान्ति सुवर्ण समान और १००८ लक्षण थे । क्रमश: मप राशि के गुणों को वृद्धि होने से यौवन का आगमन हुआ। विश्वसेन महाराजा की दूसरी पत्नी यशस्वती से दृढरथ का जीव अहमिन्द्र लोक से च्युत हो चक्रायुध नाम का पुत्र हुआ। दोनों ही पुत्र कुल, वय, रूप लावण्य भीलादि से शोभायमान थे। अत: विश्वसेन महाराजा ने तदनुरूप अनेकों कुलीन कन्यानों के साथ इनका विवाह किया। अपनी अपनी देवियों के साथ विविध प्रकार क्रीडा, भोगबिलासों के साथ उनका काल व्यतीत होने लगा । इस प्रकार शान्तिनाथ कमार के २५००० वर्ष बीत गये। तब विश्वसेन महाराजा ने उनका राज्याभिषेक इन्द्र की सहायता से किया। अर्थात् स्वयं इन्द्र भी पापारा । विश्वसेन स्वयं दीक्षा धारणा कर वन चले गये। अपने सौतेले भाई चक्रायुध के साथ शान्तिनाथ बड़ी निपुणता से राज्य संचालन करने लगे। राज्यकाल और चक्रवतित्व-विग्विजय-- इनके जन्म के पूर्व चौथाई पत्य तक धर्म का विच्छेद रहा था । तीर्थपुर का रूप लावण्य अप्रतिम होता ही है, फिर ये १२ थे कामदेव १६० ]
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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