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ने अभिषेक कर कोमल वस्त्र से अंग पोंछा। सभी अलंकारों से अलंकृत किया वस्त्र पहना कर काजल एवं तिलक लगाया। पुनः नृत्य गान वादिनादि से काम्पिल्य नगर में बालक को लाकर माता-पिता को सौंपा। हर्ष से आनन्द किया | बालक का नाम विमलनाथ कुमार प्रख्यात किया इनका चिह्न कर निश्चित किया । जन्म कल्याणक पूजा कर अपने-अपने स्थान पर चले गये ।
कुमार काल
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द्वितीया के मयत वत् बालक बढने लगा उनके शरीर वृद्धि के साथ बुद्धि, कला, ज्ञान, प्रतिभा भी बढ़ रही थी । इतना ही नहीं समस्त प्रजा का सुख वैभव भी बढ रहा था । देव बालक प्रभु के साथ क्रीड़ा करते, खेलते, विनोद करते देवाङ्गनाएँ स्वर्ग से लाए वस्त्रालंकारों से सज्जित कर अपने को धन्य कृतकृत्य समझती । इनकी आयु ६० लाख वर्ष थी । ये श्री वासुपूज्य स्वामी के बाद ३० सागर बीतने पर हुए । ग्रन्त के १ पल्य तक धर्म का विच्छेद रहा। इनका शरीर ६० धनुष ऊँचा था, सुवर्ण के समान उनकी कान्ति थी, वे सर्व प्रकार पुण्य समूह थे । संसार को पवित्र करने वाले देव कुमारों के साथ कोड़ा करते हुए समस्त जनों के नयन सितारे थे । इनकी बाल लीलाओं में विवेक था, बुद्धि चातुर्य और वात्सल्य - मंत्री का भाव था । प्राणी मात्र के उत्थान का अभिप्राय रहता । कभी भी किसी के तिरस्कार की भावना जाग्रत नहीं होती थी । इस प्रकार १५ लाख वर्ष खेल-कूद में समाप्त हो गये ।
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राज्य भोग
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कुमार काल पूर्ण होते ही माता-पिता ने गार्हस्थ जीवन में प्रवेश कराया । पिता ने राज्यभार देकर अपना नियोग पूरा किया | लक्ष्मी उनके साथ जन्मी थी। स्वयं इन्द्र ने पट्टाभिषेक किया । कीर्ति जन्मांतरों से साथ श्री सरस्वती ने स्वयं इन्हें स्वीकार किया। बड़े-बड़े ऋषि सुनियों में पाये जाने वाले गुण इनमें अंकुरित रूप में विद्यमान थे 1 कुन्द फूल के समान इनका यश लोक व्याप्त हो गया। इस प्रकार ३० लाख वर्ष राज्य भोगों में व्यतीत हो गये ।
वैराग्य
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प्रत्येक कार्य की सिद्धि के पीछे कोई न कोई परोक्ष या प्रत्यक्ष निमित्त कारण अवश्य रहता है । पञ्चेन्द्रिय विषयों में भापादमस्तक
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