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________________ व १२- १००८ श्री वासुपूज्य जी पूर्व व परिचय... तृतीय द्वीप है पुष्करार्द्ध । पूर्व मेरी की ओर बहती है सीता नदी । इसके पश्चिम किनारे पर बसा है 'वत्सकावती' देश | इसमें है रत्नपुर नगर । यहाँ का राजा था पद्मोत्सर । उसके कीर्ति गुणों में सबके वचन प्रवर्तते थे । वह पुण्यरूप था, सब की प्रॉखों का तारा, धर्मरूप आजिविका का धारक, मेल मिलाप की वारणी से संयुक्त, तेज रुप शरीर से मण्डित बुद्धि का भंडार था । धन दान में व्यय करता था । भक्ति जिन देव में ही थी । इसी प्रकार के गुरणों से मण्डित शीत शिरोमणि उसकी महादेवी लक्ष्मी थी । प्रजा सुखी थी । एक समय मनोहर पर्वत पर युगमंधर नामक जिनराज पधारे । पद्मोत्तर राजा पुरजन, परिजन सहित वन्दनार्थ गया । महा विभूति से अष्ट प्रकारी पूजा की। धर्मोपदेश सुना अपने पुत्र धनमित्र को राज्य [ १५६
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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