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________________ * ११ - १००८ श्री श्र यांसनाथ जी पूर्वमथ वृतान्त चारों ओर राजा नलिनप्रभ के प्रशंसा गीत सुनाई पड़ते थे । वह उत्साह मंत्र और प्रभाव तीनों पक्तियों से युक्त था। उसकी राजधानी में निरन्तर मंगल क्षेमकुशल या इसीलिए "क्षेमपुर" सार्थक नाम था । उसकी बुद्धि का ठिकाना नहीं था । कठिन से कठिन समस्याओं को क्षणमात्र में हल कर लेता था । उसका प्रन्तःपुरः सुशील व सुन्दर स्त्रियों से भरा था, प्रज्ञाकारी पुत्र थे, निष्कण्टक राज्य था, अटूट सम्पत्ति थी, स्वयं स्वस्थ था, निरोग था । संक्षेप में सर्वसुख सम्पन्न था। यह क्षेमपुर पुष्करार्द्ध द्वीप में पूर्व विदेह के सुकच्छ देश में स्थित है । सीता नदी के तट पर रहने से धन-धान्य से परिपूर्ण था । "महाराजेश्वर ! आपके पुण्य से 'सहस्राम' वन में अनन्त नाम के जितेन्द्र पधारे हैं। उनके प्रताप से छहों ऋतुद्मों के कल फलित हो गये. [ १५१
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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